शिव-पार्वती विवाह / Shiva Parvati vivah
भगवान शिव और माता पार्वती की शादी संसार की सबसे अनोखी शादी थी क्योंकि इस शादी में देवताओं के अलावा असुर और मानव, भूत-प्रेत, गण आदि सभी मौजूद थे। शिव को पशुपति भी कहा जाता है, इसलिए सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी बारात में शामिल होने पहुंचे थे।
जहां देवता जाते हैं, वहां असुर नहीं जाते क्योंकि उनकी आपस में बिलकुल नहीं बनती। मगर भोलेनाथ के विवाह में उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक-साथ मेहमान बनकर पहुंचे।
बारात आने का समाचार सुनकर सभी लोगों मे हलचल मच गई। बारात का स्वागत करने वाले बनाव-श्रृंगार करके और विभिन्न प्रकार की सवारियों को लेकर पहुंचे।देवताओं को देखकर तो सभी खुश हुए परंतु शिवजी के रूप को देखकर सभी डरकर भाग गए।यह कैसी बारात है, दूल्हा बैल पर सवार होकर आया है उसपर इतना भयावह रूप। साँप, कपाल और राख से श्रृंगार किया है।
पार्वतीजी की माँ मैना रानी ने आरती की थाल सजाई और स्त्रियां मंगलगीत गाने लगी। मैना बड़ी प्रसन्न और उत्सुकता के साथ शिवजी को परछने जा रही थी पर जब मैना ने शिवजी को देखा तो वे मूर्छित हो गई।
जब उनको होश आया तो रोते हुए बोली-'मैं अपनी पुत्री का विवाह इस बावले योगी से कभी नहीं होने दूंगी और इतना कहकर रोने लगीं । नारद जी को भी बहुत सुनाया जिन्होने शिवजी की बहुत प्रशंसा की थी।
ये सब सुनकर पार्वतीजी को बहुत दुख हुआ । उन्होंने अपनी मां को समझाया और कहा कि मेरे लिए चिंता मत करो, मेरे भाग्य में जो लिखा है वही मुझे मिलेगा।
फिर ऐसा कहकर पार्वतीजी शिवजी के पास गई और उनसे निवेदन किया कि आप जैसे है, मुझे उसी रूप में स्वीकार है । इतना कहना था कि तभी भगवान विष्णु वहां पहुंचे और कहा कि- आप चिंता न करे, आज भोलेनाथ का ऐसा रूप बनेगा जिसे देखकर सभी दंग रह जाएंगे।और फिर विष्णुजी ने महादेव का श्रृंगार किया और सुंदर वस्त्र पहनाएं।
भोलेनाथ के इस रूप को विष्णुजी ने चंद्रशेखर नाम दिया।
इस तरह नारद जी ने मैना रानी को समझाया कि उनकी पुत्री और कोई नहीं साक्षात जगतजननी जगदम्बा और शिव की अर्धांगिनी हैं। इनका तो जन्म ही शिव से विवाह के लिए हुआ है। भोलेनाथ का असली रूप तो आपने देखा ही नहीं, जिसे भगवान विष्णु ने स्वयं अपने हाथों से सजाया है।
तब मैना रानी और हिमालय खुश हो शिव के चंद्रशेखर रूप का दर्शन करते हैं।उन्होंने अपने दामाद की सुंदरता देखी और आरती उतारकर महल में चली गई।
चूंकि माता पार्वती एक राजपरिवार से थी इसलिए इस विवाह समारोह में सबसे पहले एक अहम समारोह होना था। इस समारोह में वर-वधू दोनों पक्षों की वंशावली घोषित की जानी थी
पहले वधू पक्ष ने अपनी वंशावली का खूब बखान किया। जब वधू पक्ष ने अपने वंशावली का बखान समाप्त किया तो सभी लोग वर पक्ष की ओर देखने लगे।
सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर भगवान शिव के वंश के बारे में बोलेगा पंरतु किसी ने कुछ नहीं कहा।
माता पार्वती के पिता पर्वत राज हिमालय ने भोलेनाथ से अनुरोध किया कि अपने वंश के बारे में कुछ बताए पर वे कहते क्या क्योंकि उनका कोई परिवार तो था ही नहीं और न वंश। वे तो स्वयं जगतपिता है ।
भगवान शिव चुपचाप बैठे रहे।
फिर देवर्षि नारद जो यह सब तमाशा देख रहे थे, अपने स्थान से मुस्कुराते हुए उठे और कहा- 'न ही इनके माता-पिता है और न ही इनका कोई गोत्र है।
यह सुनकर पर्वत राज हिमालय चौंक गए।तब नारद जी ने सबको बताया कि शिव तो स्वयंभू है, उन्होंने खुद अपनी रचना की है, अपनी क्या समस्त संसार की रचना इनसे ही हुई है। इस संसार के कण-कण मे शिव विद्यमान है तो फिर उनका परिवार कैसे हो सकता है?
नारद जी ने माता पार्वती के माता-पिता का भ्रम दूर किया और इस प्रकार शिव-पार्वती का विवाह निर्विध्न हुआ ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें