पार्वती पुत्र गणेश, पौराणिक कथा, hindu mythological stories

Lord Ganesha story in hindi





एक बार तारकासुर नामक असुर ने ब्रह्मदेव से वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की। कठिन तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रसन्न होकर तारकासुर के सामने प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा । तब तारकासुर ने अमृत्व का वरदान मांगा। पर ब्रह्मदेव ने तारकासुर से कहा-'वत्स ! अमर होने का वरदान मैं तुम्हें नहीं दे सकता क्योंकि यह सृष्टि के नियमों के विरूद्व है, स्वयं महादेव भी तुम्हें यह वरदान नहीं दे सकते। तुम कुछ और मांग लो।'


तब तारकासुर ने ब्रह्मदेव से कहा-'ब्रह्मदेव मुझे ऐसा वर दे कि सिर्फ शिव की उर्जा से उत्पन्न पुत्र ही मेरा वध कर सके।

इस पर ब्रह्मदेव ने त्थासतु कहा और अंतर्धान हो गए।




ब्रह्मदेव से वरदान पाकर तारकासुर और शक्तिशाली हो गया। उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस पर सभी देवता भयभीत हो महादेव के पास जा पहुंचे और ब्रह्मदेव के वरदान का स्मरण कराते हुए महादेव से विनती की कि अब हम सभी की रक्षा आप ही कर सकते है। जब यह बात देवी पार्वती ने सुनी तो उन्हें बहुत दुःख पहुंचा। महादेव भी चिंतित हो गए। अततः संसार की रक्षा हेतु महादेव देवताओं की बात मान गए पर माता पार्वती बहुत दुखी थी। महादेव ने उन्हें समझाया और देवी को उनकी बात माननी पड़ी।



इस प्रकार महादेव की उर्जा से कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ और देवताओं का मनोरथ पूर्ण हुआ। कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और देवताओं की रक्षा की।



इसी समय स्वर्ग के राजा इन्द्र ने भगवान शिव से और एक प्रार्थना की कि जम्बूद्वीप (भारत) के दक्षिणी छोर पर कुछ असुरों का निवास है जो समय देखकर अपने निवास स्थान से निकलते हैं और चारों ओर तबाही फैलाकर वापस वहीं छुप जाया करते हैं। देवताओं को इन असुरों से खतरा है कहीं ये स्वर्ग पर आक्रमण न कर दे। इसीलिए कुमार कार्तिकेय को दक्षिण में इन असुरों को समाप्त करने भेजा जाए। पर इस बात पर माता पार्वती क्रोधित हो गई और कहा कि कुमार कार्तिकेय का जन्म तारकासुर को मारने के लिए हुआ था और अब वह अपने पुत्र को कहीं जाने नहीं देंगी। पर पिता की आज्ञानुसार कुमार कार्तिकेय को जाना पड़ा।



कार्तिकेय के जाने के बाद माता पार्वती बहुत दुखी हुई।
उन्हें दुखी देखकर उनकी सखी जया और विजया ने देवी पार्वती से कहा कि कार्तिकेय तो अपने पिता की आज्ञा ही मानते हैं और पिता की इच्छा के विरूद्ध वह कोई कार्य नहीं करते हैं। अतः एक ऐसा पुत्र हो जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करें। तब माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की। इस प्रकार गणेश भगवान की उत्पत्ति हुई और इसलिए उन्हें 'पार्वती पुत्र गणेश' कहा गया।



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