महिषासुर का वध / Mahisasur ka vadh
महिषासुर का वध करने वाली माँ आदि शक्ति देवी कात्यायनी
उस समय समस्त पृथ्वी, जल, थल, आकाश और पाताल में
महिषासुर ने हाहाकार मचा रखा था । सभी देवता, गण,
मनुष्य तथा जीव -जंतु उसके अत्याचार से पीड़ित थे ।
सभी परेशान और दुखी थे। चारों ओर भय का माहौल बना
हुआ था। इस मुसीबत से बचाने वाला कोई नहीं था क्योंकि
महिषासुर को स्वंय सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था।
उसी समय किसी वन में महर्षि
कात्यायन भगवती दुर्गा की तपस्या में लीन थे । वे देवी को
अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी
कि देवी आदि शक्ति उनकी पुत्री के रूप में उनके घर में जन्म
लें। अत्यंत कठोर तपस्या के पश्चात देवी दुर्गा ने ॠषि
कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री के रूप में
जन्म लेने का वरदान देकर अंतर्ध्यान हुई। तत्पश्चात देवी ने
उनके घर में जन्म लिया । कात्य गोत्र और कात्यायन ॠषि
की कन्या होने का कारण देवी दुर्गा कात्यायनी के नाम से
जानी गई ।देवी जगदंबा को अपना पुत्री के रूप में प्राप्त कर
वे अत्यंत प्रसन्न हुए तथा देवी का पूजन किया।
उधर महिषासुर का अत्याचार
दिनों -दिन बढ़ता ही जा रहा था । देवताओं का स्वर्ग से
आधिपत्य खत्म हो चुका था। सभी देवता अपनी चिंता लिए
भगवान विष्णु के पास गए । तत्पश्चात श्री हरि विष्णु ने उन्हें
बताया कि महिषासुर को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त है
जिसके फलस्वरूप उसे कोई पुरुष नहीं मार सकता ।
महिषासुर का जन्म पुरुष और महिष (भैंस) के मिलन से
हुआ है। उसके पिता रंभ को एक भैंस से प्रेम हो गया जिससे
मिलन के कारण महिषासुर का जन्म हुआ और इस कारण से
वह आधा मनुष्य और आधा भैंसा था ।
धीरे धीरे उसके मन में अमर होने तथा समस्त
संसार में राज करने की इच्छा जागी तब उसने ब्रह्मा जी को
खुश करने के लिए दस हजार बर्षों तक घोर तपस्या की।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे
दर्शन दिया और अपना वरदान मांगने के लिए कहा ।
महिषासुर ने कहा-" प्रभु मुझे अमर होने का वरदान प्रदान
करे।" इस पर ब्रह्मदेव ने उसे कोई ओर वरदान मांगने के लिए
कहा क्योंकि वे अमरत्व का वरदान किसी को नहीं दे सकते।
अतः महिषासुर ने यह वर माँगा कि उसे कोई पुरुष नहीं मार
सके । ब्रह्मा जी ने उसे वह वर प्रदान किया जिसके कारण
महिषासुर की आसुरी शक्तियांओर बढ़ गई।
जब भगवान विष्णु ने यह बातें देवताओं को बताई तो
देवताओं की परेशानी ओर बढ़ गई। सभी देवता मिलकर
विष्णु जी से इस समस्या का समाधान पूछने लगे । तब श्री हरि
ने देवताओं की समस्या का समाधान करते हुए उन्हें बताया
कि महिषासुर को मारने के लिए देवी आदि शक्ति दुर्गा ने ॠषि
कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म लिया है। ये जानकर
देवताओं की खुशी का ठिकाना न रहा।
अतः सभी देवता ऋषि कात्यायन
के आश्रम में माँ जगदंबा के पास अपनी विनती लेकर गए
और देवी को महिषासुर के अत्याचारों के बारे में बताया।
तब भगवती दुर्गा ने उन्हें जल्द ही महिषासुर से मुक्ति दिलाने
का आश्वासन दिया । नवरात्रि के पावन दिनों में देवी ने
महिषासुर के अत्याचारों के विरुद्ध युद्ध छेड़ा । यह युद्ध नौ
दिनों तक चला और इन्हीं नौ दिनों में देवताओं ऋषि मुनियों
तथा मनुष्यों ने नवरात्रि का व्रत रखकर देवी भगवती की
उपासना की । तत्पश्चात दशमी को माँ दुर्गा देवी कात्यायनी
ने महिषासुर का वध किया और संसार को उसके अत्याचारों
से मुक्ति दिलाई । तब से नवरात्रि में भगवती दुर्गा के नौ रूपों
की पूजा तथा व्रत किया जाता है ।
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