जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
जगन्नाथ मंदिर को हिन्दू धर्म मेंं चारों धाम में से एक माना
गया है । यहां हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा
निकाली जाती है जो सिर्फ देश में नहीं विश्व भर में अति
प्रसिद्ध हैं । जगन्नाथ पुरी को मुख्यतः पुरी नाम से जाना जाता
है । रथयात्रा की धूम दस दिनों तक चलती है और इस समय
पूरे देश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं ।
भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है
जिनकी महिमा का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी
किया गया है । जगन्नाथ रथयात्रा में श्रीकृष्ण , बलराम और
उनकी बहन सुभद्रा का रथ होता है । जो इस रथयात्रा में
शामिल होकर रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञों के बराबर का
पुण्य मिलता है । हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथयात्रा का बहुत
महत्व है । मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ के रथ को
निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है जहाँ
भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं । गुंडिचा माता मंदिर में
भारी तैयारीयां होती हैं । इस यात्रा को पूरे भारत में एक पर्व
की तरह मनाया जाता है । रथयात्रा में सबसे पहला रथ
बलराम का होता है फिर उनकी बहन सुभद्रा का रथ बीच में
होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ रहता है ।
भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष 45.6 फीट ऊंचा , बलराम
जी का रथ तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का
रथ दर्पदलन 44.6 फीट ऊंचा रहता है ।
सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाया
जाता है । इन रथों के निर्माण में किसी प्रकार के धातु का
प्रयोग नही किया जाता है । रथों के लिए लकड़ी का चयन
वसंत पंचमी से शुरू होता है और रथ का निर्माण अक्षय
तृतीया से शुुरू होता है ।
जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया
तिथि को प्रारंभ होती हैं । इस वर्ष रथयात्रा मंगलवार 23 जून
2020 को होने वाली है । वैसे इस समय जिस तरह के हालात
है कोरोना वायरस को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
रथयात्रा के पीछे की पौराणिक कथा:-
ऐसा माना जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण की बहन देवी सुभद्रा
ने अपने भाईया से द्वारका नगर घूमने की इच्छा जताई थी ।
तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रथ मे बैठाकर पूरा नगर घुमाते है ।
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