नवदुर्गा / Navdurga
शारदीय नवरात्र की शुरुआत आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा
को कलश स्थापना के साथ ही होती है। इन नौ दिनों में माँ
आदिशक्ति देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
मान्यता के अनुसार नवरात्रि के पावन रात्रि में माँ आदि शक्ति
साल में एक बार अपने मायके आती हैं और विजयादशमी के
शुभ अवसर पर उनकी पूजा-अर्चना के बाद विदाई की जाती
है । इसी मान्यता के अनुसार हमारे यहां शादीशुदा लडकियों
को विजयादशमी के शुभ दिन में ससुराल भेजे जाने की प्रथा
चलती आ रही है । नवरात्रि के ऐ नौ रात बहुत पावन माने
जाते हैं । माँ के सभी भक्त इन नौ दिनों में उपवास रखकर
माता की उपासना करते हैं । पहले दिन से ही कलश स्थापना
के साथ ही देवी के पहले स्वरूप "माता शैलपुत्री " की पूजा
के साथ ही नवरात्रि की शुरुआत होती है।
माँ शैलपुत्री -
नवरात्रि के पहले दिन माँ आदि शक्ति के रूप शैलपुत्री की
उपासना की जाती है। इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर
में उनकी पुत्री के रूप में हुआ था इसलिए इन्हें शैलपुत्री या
शैलसुता के नाम से जाना जाता है ।
अपने पिछले जन्म में माँ का जन्म दक्ष प्रजापति के घर में
उनकी पुत्री सती के रूप में हुआ था । पार्वती तथा गौरी
इनके अन्य नाम है।
माँ ब्रह्मचारिणि-
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारीणि की उपासना करते हैं ।
अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति रूप में
पाने के लिए अत्यंत कठोर तपस्या की थी इसलिए इन्हें
तपचारिणि या ब्रहमचारिणी कहा गया है ।
माँ चंद्रघंटा-
तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है । इनके मस्तक
पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसलिए इनको माँ
चंद्रघंटा कहा गया है। इनका शरीर सोने सा चमकीला और
दस हाथ है ।
पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसलिए इनको माँ
चंद्रघंटा कहा गया है। इनका शरीर सोने सा चमकीला और
दस हाथ है ।
अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित माँ चंद्रघंटा पापियों का संहार करने
वाली तथा अपने भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी है ।
माँ कूष्माण्डा -
देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप माँ कूष्माण्डा है । इनकी हल्की
हँसी से ही समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है इसलिए इनका
नाम कूष्माण्डा पड़ा। इनकी आठ भुजाएं है इसलिए इनको
अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है । माँ को कुम्हडा अत्यंत प्रिय
है इसलिए माँ कूष्माण्डा को विशेष रूप से कुम्हडे का भोग
लगाया जाता है ।
माँ स्कंदमाता -
नवरात्रि के पांचवे दिन में माँ आदि शक्ति के रूप स्कंदमाता
की पूजा अर्चना की जाती है । स्कंद (कुमार कार्तिकेय ) की
माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा ।
इनके गोद में बालक कुमार कार्तिकेय विराजमान है ।
इनकी चार भुजाएं है तथा ये अपने भुजा में कमल पुष्प को
धारण किये हुए हैं। माँ स्कंदमाता विद्वानों को पैदा करने वाली
है।
माँ कात्यायनी-
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की उपासना करते हैं ।
इनका ध्यान गोधुली वेला में किया जाता है । इन माता की
पूजा से भक्तों में अद्भुत शक्ति का संचार होता है ।
महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम माँ
कात्यायनी पड़ा ।
माँ कालरात्रि-
नवरात्र की सप्तमी तिथि को माँ कालरात्रि की पूजा अर्चना
की जाती है । इनका रूप भयंकर होता है, सिर के बाल बिखरे
हुए गले में बिजली सी चमकती माला और शरीर का रंग घने
अंधकार की तरह काला । देवी कालरात्रि समस्त पापों का
नाश करने वाली हैं ।
माँ महागौरी -
नवरात्रि की अष्टमी को माँ आदि शक्ति स्वरूपा माता
महागौरी की पूजा का विधान है । यह दिन दुर्गा अष्टमी के
रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। इनकी मुद्रा बिलकुल
शांत है और ये अभय प्रदायिनि है।
भगवान शिव को पति रूप
में पाने के लिए देवी गौरी ने हजारों साल अत्यंत कठोर तपस्या
की थी जिसके कारण माता का शरीर बहुत काला पड गया
था। पंरतु जब भोलेनाथ इनकी तपस्या से प्रसन्न हुए तो माँ
का शरीर गंगाजल से धोकर फिर से कांतिमान बना दिया
जिससे इनका रूप गौर वर्ण का हो गया है और इसलिए
देवी माँ महागौरी कहलायी ।
देवी महागौरी महा फलदायी हैं। इनकी उपासना करने वाला
व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्ति हो शांति प्राप्त करता है।
माँ सिद्धिदात्री -
देवी सिद्धिदात्रीनवदुर्गा का नौवाँ स्वरूप है तथा नवरात्रि के
नौवें दिन इनकी उपासना करने का दिन होता है ।
माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को समस्त सिद्धियों को प्रदान
करने वाली होती है । माँ सिद्धिदात्री अत्यंत कल्याणकारी
मानीं गई है ।
हमारे यहाँ यह नवमी के रूप में मनाया जाता है ।
इस दिन नवरात्रि का व्रत खोला जाता है । बहुत जगहों पर
इस दिन बकरे की बलि देने की प्रथा चलती आ रही है।
लोग इसे प्रसाद के रूप में खाते हैं।
दशमी को माँ आदि शक्ति दुर्गा की उपासना करते हुए उन्हें
अगले साल फिर से आने की कामना करते हुए भक्त माँ की
विदाई करते हैं ।
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