कथा शनि देव की / Katha Shani Dev ki
Shani Dev ki katha |
शास्त्रों के अनुसार कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्य देव की पत्नी छाया के कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि देव का जन्म हुआ । छाया ने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी । तेज धूप और गर्मी के कारण शनि देव का वर्ण काला पड़ गया परंतु इस तप ने उन्हें असीम ताकत प्रदान किया ।
एक बार कि बात है जब भगवान सूर्य अपनी पत्नी छाया से मिलने गए तो शनि देव अपनी माता के गर्भ में थे और अपने पिता का तेज नहीं सह सकें और अपनी आँखे बंद कर ली ।भगवान सूर्य ने जब अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि उनका होने वाला पुत्र काला है जो उनका नहीं हो सकता । सूर्य ने छाया से अपना यह संदेह व्यक्त भी कर दिया । इस कारण शनि देव के मन में अपने पिता के प्रति शत्रु भाव पैदा हो गया । शनि के जन्म के पश्चात भी उनके पिता ने कभी उनके साथ पुत्र वत व्यवहार नहीं किया ।
बड़े होने के पश्चात शनि देव ने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की और जब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर वरदान मागने के लिए कहा तो शनि देव ने कहा कि उनके पिता सूर्य ने हमेशा उनकी माता का अनादर किया और उन्हें शनि की वजह से प्रताड़ित किया है इसलिए आप मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली और पूज्य होने का वरदान प्रदान करें । तब भोलेनाथ ने शनि देव को वरदान दिया कि तुम नव ग्रहों मे सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने के साथ सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी के पद पर आसीन रहोगे । साधारण मानव तो क्या देवता , दानव , गंधर्व , नाग , सिद्ध आदि सभी तुम्हारे प्रकोप से भयभीत रहेंगे ।
राजा विक्रमादित्य और शनि देव की कथा
एक बार कि बात है सभी नव ग्रहों सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , बृहस्पति , शनि और राहु केतु में यह विवाद छिड़ गया है कि सबसे बड़ा कौन हैं । सभी की आपस में बहस होने लगी परंतु कोई निर्णय नहीं होने पर वे सभी देवराज इंद्र के पास इस समस्या के समाधान के लिए गए । इन्द्रदेव अचानक से घबरा गए और अपनी असमर्थता जताई परंतु फिर कुछ सोचकर उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर अभी उज्जयिनी नगरी के राजा विक्रमादित्य है जो बहुत ही न्यायप्रिय है । वे ही इस बात का सही निर्णय ले सकते हैं । सभी नवग्रह तत्पश्चात देवराज इन्द्र के साथ पृथ्वीलोक मे राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और उनसे अपनी समस्या के बारे में बताया और उसका सही निर्णय लेने का निवेदन किया ।
राजा विक्रमादित्य समस्या सुनकर चिंतित हो गए क्योंकि वे जानते थे कि जिसे भी छोटा कहा वही क्रोधित हो जाएगा ।
तब विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा । उन्होंने स्वर्ण , रजत , कांस्य , पीतल , सीसा , रांगा , जस्ता , अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाया और उन्हें इसी क्रम से रख दिया । सभी नवग्रहों से निवेदन किया कि आप सभी अपना अपना सिंहासन ग्रहण करें जो भी सबसे अंत मे सिंहासन पर बैठेगा वह सबसे छोटा होगा ।
इस प्रकार लौह सिंहासन सबसे अंत मे था अतः शनि देव सबसे आखिर में बैठे अतः वह सबसे छोटे कहलाए । शनि देव को लगा कि राजा ने ऐसा जानबूझकर किया है इसलिए वह क्रोध में आकर राजा विक्रमादित्य से बोले कि राजन् तुम मुझे नहीं जानते । सूर्य एक राशि में एक महिने , चन्द्रमा सवा दो
महीने दो दिन , मंगल डेड्ह महीने , बृहस्पति तेरह महीने , बुध व शुक्र एक एक महिने विचरण करते हैं । लेकिन मैं ढाई से साढ़े सात साल तक रहता हूँ । बड़े बड़ो का मैंने विनाश किया है । अब तुम सावधान रहना ऐसा कहकर शनि देव कुपित होकर वहां से चले गए ।
अन्य सभी ग्रह वहां से खुशी खुशी चले गए । कुछ समय पश्चात राजा विक्रमादित्य की साढ़े साती आई । तब शनि देव घोड़ो के सौदागर बनकर उज्जयिनी नगरी में आए । उनके पास एक से एक बढिया घोड़े थे । राजा ने अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी । उसने शनि देव से कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को सवारी हेतु राजा को दिया । राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस घोड़े पर सवार हुए वह घोड़ा सरपट दौडा और वन की ओर भागा । भीषण वन में पहुंच कर गायब हो गया ।
इस तरह राजा विक्रमादित्य ने शनि की साढ़ेसाती के कारण बहुत दुख झेले यहां तक की उनके हाथ पैर भी कट गए । तब एक रात सोते हुए शनि देव ने राजा विक्रमादित्य से कहा, 'राजन् देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुख झेला , तब राजा ने उनसे क्षमा मांगी और प्रार्थना करते हुए कहा कि हे शनि देव जैसा दुख मुझे दिया है वह दुख किसी ओर को मत देना । शनि देव मान गए और कहा कि जो मेरी कथा सुनेगा और व्रत कहेगा , उसे मेरी दशा में कोई दुख नहीं होगा ऐसा कहकर शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ पैर लौटा दिए ।
सब ठीक होने के बाद राजा विक्रमादित्य अपने राज्य वापस चले गए और उन्होंने वहां घोषणा करवाया कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था परंतु असल में वही सर्वश्रेष्ठ है । इसके बाद से सारे नगरी में शनि देव की पूजा व कथा नियमित रूप से होने लगीं । सारी प्रजा सुखपूर्वक जीवन बिताने लगीं । जो कोई भी शनि देव की इस कथा को सुनता या पढता है उसके सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं । शनि देव की साढ़ेसाती का उसपर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है ।
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