हरतालिका तीज व्रत कथा 2020 /Hartalika teej vrat katha 2020
Hartalika Teej Vrat Katha |
हरतालिका तीज को तीज भी कहते हैं । यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया हस्त नक्षत्र के दिन होता है ।। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करतींं है । तीज का त्यौहार विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल , बिहार , झारखंड , और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है । तीज का त्यौहार करवा-चौथ से कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवा-चौथ में रात को चांद देखकर व्रत खोलने का नियम है वही दूसरी ओर तीज में पूरे दिन निर्जला व्रत रख कर अगले दिन पूजन के बाद ही व्रत खोलने का नियम है । इस व्रत से जुड़ी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी केे समान ही सूखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती है ।
सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने सुहाग को अखंड बनाने के लिए तथा अविवाहित युवतीयां मनचाहा वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं । माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए सर्वप्रथम हरतालिका तीज का व्रत रखा था । स्त्रीयां इस दिन सोलह श्रृंगार करके गौरी-शंकर और भगवान गणेश की पूजा करतीं हैं। पूजा की चौकी पर रेत से गौरी-शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूजन का संकल्प लेकर पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है । माता पार्वती को श्रृंगार का सारा सामान चढ़ाया जाता है । रात में भजन कीर्तन करते हुए रात के चार पहर पूजा आरती की जाती है तथा हरतालिका तीज की कथा सुनी जाती है । इस व्रत की अनिवार्यता है कि एक बार शुरू करने के बाद जीवन पर्यन्त इसे करना पड़ता है । अगले दिन पूजन के बाद ही पारण करने का नियम है ।
हरतालिका तीज की कथा -
पार्वतीजी के पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए एक बार भगवान भोलेनाथ ने उनकी तपस्या की कथा सुनाई ।
हे गौरी ! तुम पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था और बाल्यावस्था में ही मुझे पति रूप में पाने के लिए तुमने कठिन तप किया । भागीरथी के तट पर अधोमुखी होकर अन्न जल त्यागकर तथा केवल हवा तथा सूखे पत्ते चबाकर कठोर तपस्या की थी । माघ मास की शीतलता में तुमने जल में प्रवेश किया था । वैशाख मास की तपती गर्मी में तुमने पचांग्नि से अपने शरीर को तपाया । श्रावण मास में तुम मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे रही । तुम्हारी इस कठोर तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुखी रहते थे । एक बार तुम्हारी तपस्या और तुम्हारे पिता का दुख देखकर नारद जी तुम्हारे पिता के पास आए और बोले पर्वतराज हिमालय आपकी पुत्री की तपस्या को देखकर भगवान विष्णु बड़े प्रसन्न है और उन्होंने मुझे यहां भेजा है । वे पार्वती से विवाह करना चाहते हैं ।
तुम्हारे पिता ने बड़ी खुशी से उनका यह प्रस्ताव मान लिया किन्तु जब तुम्हें इस विवाह संबंध के बारे में पता चला तो तुम बहुत दुखी हुई । तुम्हें दुखी देखकर एक सखी ने तुमसे दुख का कारण पूछा तब तुम बोली -
"मैने सच्चे मन से भोलेनाथ का वरण किया है , परंतु मेरे पिता ने भगवान विष्णु के साथ मेरा विवाह तय कर दिया है । मै बहुत बड़े धर्मसंकट में हूँ । अब मेरे पास प्राण त्यागने के अतिरिक्त कोई ओर उपाय नहीं है ।"
तुम्हारी सखी ने कहा - प्राण त्यागने का यहां कोई कारण नहीं है । दुख के समय धैर्य से काम लेना चाहिए । मै तुम्हें घने वन में ले चलती हूँ जो तपस्या स्थली है और तुम्हारे पिता भी तुम्हें ढूंढ नहीं सकेंगे । मुझे पूरा विश्वास है कि भोलेनाथ तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेंगे ।
तत्पश्चात तुम अपनी सखी के साथ घने वन में चलीं जाती हो दूसरी ओर तुम्हारे पिता तुम्हें अपने महल में न देख बहुत दुखी और चिंतित हो जाते हैं । वे सोचने लगते हैं कि मैंने तो अपनी पुत्री का विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है कहीं वह बारात लेकर न आ जाए और कन्या न मिली तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा । ऐसा सोचकर तुम्हारे पिता ने तुम्हारी खोज शुरू करवा दी । इधर तुम नदी तट के एक गुफा में मेरी तपस्या में लीन रहने लगी । वह दिन था भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र था । उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास रखकर पूरी रात मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया । तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मैं शीध्र ही प्रसन्न होकर तुम्हारे पास आ गया । मैने तुमसे वर मांगने के लिए कहा तब तुम बोली -
Mata parvati |
" मैने सच्चे मन से आपको पति रूप में वरण कर लिया है । अगर आप सच में मेरी तपस्या से खुश है तो मुझे अपनी अर्धांगनी के रूप में स्वीकार करे " तब मैंने तथास्तु कहा ।
अगले दिन तुमने पूजा की सारी सामग्री को नदी में प्रवाहित किया और अपनी सखी के साथ पारण किया । उसी समय तुम्हारे पिता तुम्हें ढूढते हुए वहां आ पहुंचे और तुम्हारी यह दशा देखकर बड़े दुखी हुए । तुमसे इस कठिन तपस्या का कारण पूछा तब तुमने बताया कि - मै भोलेनाथ को अपने पति रूप में पाना चाहती थी और अब मुझे इसका फल मिल गया है । चूंकि आप मेरा विवाह विष्णु जी के साथ करना चाहते थे इसलिए मै घर से बाहर इस घने वन में आकर तप करने लगीं । अब मै इसी शर्त पर घर लौटूंगी जब आप मेरा विवाह भोलेनाथ से करवाने का वचन देंगे ।
पर्वतराज हिमालय ने तुम्हारी इच्छा मान ली और तुम्हें घर वापस ले आए । समयानुसार हमारा विवाह विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ ।
महादेव फिर कहते हैं - हे पार्वती ! भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में जो तुमने व्रत करके मेरी पूजा अर्चना की उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह सम्भव हुआ । अतः इस व्रत का महत्व यहीं है कि जो भी कन्या या स्त्री इस व्रत करती है मै उसको मनवांछित फल देता हूं । चूंकि तुम्हारी सखी तुम्हें अपने घर से हर के या भागा के ले आती हैं इसलिए इसे हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है ।
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