मोहिनी एकादशी व्रत कथा / Mohini ekadashi vrat katha
कथानुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के
बीच अमृत कलश को लेकर युद्ध छिड़ गया । उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया । जिसे देखकर असुर मोहित हो गए और अमृत कलश से उनका ध्यान हट गया । सभी देवताओं ने अमृत पान किया और अमर हो गए ।
जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया वह तिथि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी । यही कारण है कि इस तिथि को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था मोहिनी एकादशी का महत्व
कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे माधव वैशाख शुक्ल एकादशी की कथा और पूजन विधि के बारे में कृपया बताएं । कृष्ण ने कहा कि यह कथा जो मै आपको बताने जा रहा हूँ वह गुरु वशिष्ठ ने प्रभु श्रीराम को बताया था । एक बार श्रीराम ने ऋषि वशिष्ठ से पूछा कि हे गुरुदेव किसी ऐसे व्रत के बारे मे बताइए जिससे समस्त दुखो और पापों का नाश हो जाए । तब ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि हे राम मोहिनी एकादशी का व्रत करने से सभी दुखों का नाश होता है और पापों से मुक्ति मिलती हैं । वह सभी मोहजाल से मुक्त हो जाता है । जो व्यक्ति मोह माया के जाल से मुक्त होना चाहते हैं उनके लिए मोहिनी एकादशी का व्रत अति उत्तम है ।
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Lord Vishnu and Mata laxmi |
इस तिथि और व्रत के बारे में और एक कथा कही जाती है सरस्वती नदी के तट पर एक सुंदर नगरी भद्रावती हुआ करतीं थी । वहां के चन्द्रवंशी राजा धृतिमान सत्यनिष्ठ और प्रजावत्स
थे । उसी नगर में एक वैश्य रहा करता था जो धन-धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था । उस वैश्य का नाम था धनपाल और वह सदा पुण्य कर्म मे ही लगा रहता था । राहगीरों के लिए प्याऊ , कुआं , मठ , बगीचे और दूसरों के घर भी बनवाया करता था । भगवान विष्णु मे उसकी असीम श्रद्धा थी । उसके पांच पुत्र थे । पांचवे पुत्र का नाम धृष्ट्बुद्धि था धृष्टबुद्धि बड़ा ही दुराचारी था । वह हमेशा पापकर्म में संलग्न रहता । जुआ खेलना और वेश्याओ से मिलने के लिए हमेशा लालायित रहता और इस तरह अपने पिता के धन को बरबाद करता रहता था । एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे अपने घर से बाहर निकाल दिया । धृष्टबुद्धि भूख प्यास से व्याकुल होकर इधर-उधर भटकने लगा । इस तरह भटकते हुए वह महर्षि कौन्डिन्य के आश्रम जा पहुंचा और कहा - ऋषिवर मैंने जीवन भर बहुत से पाप किया है परंतु आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मुझे मेरे पापकर्म से मुक्ति मिले और मेरी आत्मा मोह-माया से मुक्त हो जाए । तब महर्षि कौन्डिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल एकादशी की तिथि को मोहिनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा । उन्होंने बताया कि मोहिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पापकर्म नष्ट हो जाते हैं चाहे वो पाप पिछले जन्म के क्यों न हो । ऋषि की बात सुनकर धृष्टबुद्धि को अति प्रसन्नता हुई । उसने ऋषि के बताएं अनुसार विधि पूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया और निष्पाप होकर दिव्य देह धारण कर गरूड़ में सवार होकर बैकुंठ धाम को चला गया ।
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