राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 12 / Stories of Raja Vikramaditya 12
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ बारहवीं पुतली पद्मावती ने कहना आरंभ किया - एक बार राजा विक्रमादित्य अपने दरबार में बैठा था । उसने पूछा - कलियुग में कोई और दानी है? एक ब्राह्मण ने बताया कि समुद्र के किनारे एक राजा राज्य करता है। वह बड़ा दानी है जब तक सवेरे एक लाख रुपये दान नहीं कर लेता तब तक पानी नहीं पीता । ऐसा धर्मातमा राजा हमने नहीं देखा । ब्राह्मण के कहने पर उसे उस राजा से मिलने की इच्छा हुई । अगले दिन अपने वीरों की मदद से वह वहां पहुंचा। वहां के राजा ने विक्रमादित्य की बड़ी आवभगत की और अपने यहां चार हजार रुपये पर काम पर रख लिया। वहां रहते विक्रमादित्य को नौ-दस दिन बीत गए तो उसके मन में यह इच्छा जागी कि इतने रुपये राजा रोज लाता कहां से है । पता करना चाहिए । एक रात विक्रमादित्य ने देखा कि राजा दो पहर रात गए अकेले जंगल की ओर जा रहा है । वह भी पीछे-पीछे चल दिया । जंगल में जाकर राजा देवी के मंदिर पर रुका । राजा ने नदी में स्नान करने के बाद देवी के दर्शन किये । वहां सामने ही कड़ाह में तेल खौल रहा था । राजा उसमें कूद गया और उसमें भुन गया । तब चौंसठ योगिनीयां आई और राजा के शरीर को नोच-नोच