राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 3 / Raja Vikramaditya Ki Kahaniya 3
सिंहासन बत्तीसी
तीसरी पुतली चन्द्रकला ने अपनी कहानी सुनाई -
एक बार राजा विक्रमादित्य अपने नदी के किनारे बने महल में संगीत सुन रहे थे । वे संगीत में डुब कर उसका आनंद लें रहे थे । उसी समय एक व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चे के साथ नदी में छलांग लगा देता है । जब वे डूबने लगे तो उन्हें अपने किये पर पछतावा होने लगा और वे चिल्लाने लगते है - बचाओ बचाओ ।
उसी समय राजा के आदमी वहां पहुचते है और यह खबर राजा विक्रमादित्य को देते हैं । राजा वहां पहुंचते ही नदी में छलांग लगा देता है । जल में आगे बढ़कर उन्होंने स्त्री और बच्चे का हाथ पकड़ लिया । तभी वह आदमी भी आकर राजा से लिपट गया । राजा घबरा गए क्योंकि उसके साथ वह भी डूबने लगे ।
उसी समय राजा को अपने दोनों वीरों की याद आई जो उन्हें देवी से मिला था । वे दोनों वीर तत्काल वहां पहुंचे और राजा सहित तीनों को बचाया ।
वह आदमी राजा के पैरों में गिर पड़ा और कहने लगा आपने हमारी जान बचाई आप भगवान है ।
राजा विक्रमादित्य बोले - बचाने वाला तो ईश्वर है । उस आदमी को बहुत सारा धन देकर विदा किया ।
तीसरी पुतली चन्द्रकला राजा भोज से बोली - हे राजन् ! अगर आप राजा विक्रमादित्य के समान हिम्मतवाले है तो इस सिंहासन पर बैठने के लायक है ।
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