महात्मा बुद्ध और अंगुलिमाल डाकू






एक बार कि बात है , महात्मा बुद्ध मगध देश के किसी गांव में

गए।  वहां के लोगों ने बुद्ध का खुब आदर सत्कार किया और

उनसे उपदेश लिया ।
                           महात्मा बुद्ध ने देखा कि वहां के लोगों

में एक अजीब सा डर समाया हुआ है तब उन्होंने उनसे इस

भय का कारण पूछा । गांव वालों ने बताया कि बहुत दिनों से

वे दुखी है क्योंकि एक अंगुलिमाल नाम का डाकू जो पास के

जंगल में रहता है, उन्हें बहुत परेशान कर रखा है । जंगल में

जाने वाले हर व्यक्ति को वह अपना निशाना बनाया करता है,

उसका सारा धन लूटकर उसका सिर काट देता है और उसके

उंगलियों की माला पहनता है।   

सभी लोगों ने एक एक कर महात्मा बुद्ध को अपनी समस्या

बताई और इसका समाधान पूछा ।

                                            अंगुलिमाल के बारे में जानने

के बाद महात्मा बुद्ध ने कहा कि ठीक है मैं कल ही जंगल में

जाऊंगा और इस डाकू से मिलूंगा । महात्मा की बात सुनकर

सभी लोग डर गए और उनसे जंगल न जाने की विनती की

पंरतु महात्मा बुद्ध ने किसी की न सुनी और जंगल की ओर

चल पड़े।  बुद्ध जब घने जंगल में पहुंचे तो उन्हें एक आवाज़

आई -'ठहर जाओ!' लेकिन बुद्ध  ने उस आवाज़ की ओर

ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ते रहे ।

                                 फिर से आवाज़ आई - 'रूक जाओ

पथिक ! तुमने क्या मेरी आवाज़ नहीं सुनी? '

इस बार महात्मा बुद्ध पीछे पलटकर देखते हैं , सामने एक

काला और भयावह दिखने वाला आदमी खड़ा है, जिसने

आदमियों की उंगलियों की माला पहनी हुई है।  उसका रूप

और उसकी आवाज़ इतनी भयंकर है कि कोई साधारण व्यक्ति

देख ले तो डर से कांपने लगे पंरतु महात्मा की आखों में डर

की बजाय एक अजीब सी शीतलता और शांति व्याप्त थी

जिसे देखकर अंगुलिमाल डाकू को आश्चर्य हुआ ।
                                                                 अंगुलिमाल

ने महात्मा बुद्ध से कहा- 'तुम्हे मुझसे डर नहीं लग रहा है?

क्या तुमने मेरे  आतंक के बारे में नहीं सुना ?'

महात्मा बुद्ध बिलकुल सौम्य होकर बोले - 'तुमसे क्यो डर

लगेगा तुम भी तो मेरे जैसे ही एक सामान्य व्यक्ति हो '

                        बुद्ध की बात सुनकर डाकू अंगुलिमाल

जोर-जोर से हंसने लगा । उसकी हंसी बहुत भयानक लग रही

थी । वह बोला - 'ऐ सन्यासी ! तुम मुझे एक सामान्य व्यक्ति

समझने की भूल कर रहे हो । मैंने आज तक न जाने कितने

लोगों की हत्या की है और इस बात का प्रमाण यह उंगलियों

की माला है । लोग मुझे देखकर कांपने लगते हैं। मेरे ही डर

से कोई इस जंगल में नहीं आता ।'

                                          बुद्ध उसकी बात सुनकर

बोले- 'ठीक है  ! माना कि तुम बहुत बलवान हो तो फ़िर उस

पेड़ की कुछ पतियों को तोडकर लाओं ।'

अंगुलिमाल फिर से बुद्ध की बात सुनकर जोरों से हंसने लगा

और बोला- 'सन्यासी! तुम मुझे पत्ते तोड़ने के लिए कह रहे हो

मैं तो वह पेड़ ही उखाड़ ला दूंगा ।'

     महात्मा बुद्ध ने कहा कि - 'नहीं तुम्हें बस कुछ पत्तियां

लानी हैं। '
           बुद्ध के कहे अनुसार अंगुलिमाल पत्तियां तोड़कर ले

आया और उनके हाथों में रख दिया । 

तत्पश्चात बुद्ध ने कहा- 'लो वत्स ! इसे फिर से उसी पेड़ में

जोड़ दो । '
             अब अंगुलिमाल डाकू सोच में पड़ गया कि एक बार

तोड़ी पत्तियों को वह कैसे जोड़े? महात्मा बुद्ध उसके मन की

दशा समझ गए और तब बोले - 'वत्स! जैसे तुम इन पत्तियों

को एक बार तोड़ने के बाद फिर से नहीं जोड़ पाए, ठीक

उसी तरह  एक बार जिस व्यक्ति को तुम मार डालते हो उसे

तुम फिर से जीवित नहीं कर सकते । फिर भला कहो कैसे

तुम अपने आपको सबसे ज्यादा बलवान कह रहे हो और

यह बात मैं कैसे मान लूं ? संसार में कोई भी व्यक्ति इतना

बलवान नहीं होता है , जितनी यह प्रकृति है । इसके नियमों

के आगे किसी की न चलती हैं ।'

महात्मा बुद्ध की बातें सुनकर पता नहीं क्यों आज इतने

भयंकर और निर्दयी डाकू अंगुलिमाल का मन आत्मग्लानी

से भर उठा।  वह महात्मा बुद्ध के पैरों में गिर पड़ा और कहने

लगा - 'आप कोई साधारण सन्यासी नहीं है प्रभु ! मेरे पापों

के लिए मुझे क्षमा करे और मुझे अपनी शरण में ले ।'

महात्मा बुद्ध ने उस अंगुलिमाल डाकू को अपने  गले से

लगाया और अपना प्रिय शिष्य बना लिया ।

                                       

                                          -  महात्मा बुद्ध और उनका जीवन ( जातक कथाएँ /Jatak kathaye)







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