रानी की कहानी / Rani ki kahani






बहुत पहले की बात है, एक लड़की थी रानी । फूलों सी

कोमल और नाजुक । कहीं की राजकुमारी न थी लेकिन

अपने माता-पिता और सात भाइयों के लिए किसी राजकुमारी

से किसी मायने में कम नहीं थी।

                                रानी की जिस भी चीज की इच्छा

होती उसके माता पिता और सातों भाई मिलकर उस चीज को

तुरंत उसे लाकर रख दिया करते थे । वह नाजो से पली बढ़ी

थी जिसने कभी एक सुई तक नहीं उठाई और करे भी क्यों

भला ? सात सात भाइयों की इकलौती बहन जो ठहरी।

                       लेकिन उसकी भाभियों से उसकी यह

खातिरदारी नहीं देखी जाती थी । भाभियों को अपनी ननद

फूटी आंखों न सुहाती थी लेकिन वे करती भी क्या  अपने

पतियों से कुछ कह भी नहीं सकती थी।

       सिर्फ एक जो छोटी भाभी थी, वह अपनी ननद रानी

को बहुत प्यार करती थी ।

                                 एक बार कि बात है, रानी खेलने के

लिए गई थी घर के बाहर और फिर खेलते हुए उसे एक फूल

दिखाई पड़ा।  रानी जैसे ही फूल तोड़ने के लिए गई उसने

देखा कि वहां तो कीचड़ था । जब उससे रहा नहीं गया तो

वह दौड़ी-दौड़ी अपने माता-पिता के पास गई और उस फूल

को तोड़ने के लिए कहा।  अपनी बेटी को एक फूल के लिए

ऐसे तड़पता देख उसे गोद में उठाया और फूल तोड़ने के लिए

उसके साथ चल पड़े।

                       जब रानी के पिता फूल तोड़ने के लिए गए

तो देखा कि वहां के भयानक दल-दल है लेकिन अपनी बेटी

को खुश करने के लिए वह कुछ भी कर सकते थे इसलिए

एक लड़की की सीढ़ी लगाकर फूल तोड़ना चाहा और बस

पिता का पैर फिसला और उस दलदल में गिर गए तभी शोर

सुनकर रानी की माता आई और अपने पति को बचाने के

चक्कर में खुद भी उस दलदल  में गिर मर गए । रानी के

देखते-देखते उसके माता पिता दोनों उस दलदल में फंस कर

मर गए । उस समय उसके सातों भाई घर में नहीं थे जब वे

लौटे तो सबसे बड़ी भाभी  ने उन्हें सारी बातें रोते - रोते सुनाई

और ननद की खुब भला बुरा कहा । लेकिन भाइयों ने अपनी

बहन को कुछ नहीं कहा बल्कि उसे और ज्यादा लाड-प्यार

करने लगे ।

                             एक बार कि बात है सातों भाइयों ने

सोचा कि परदेश जाकर धन कमाना चाहिए नहीं तो अपनी

लाडली बहन की शादी हम कैसे करेंगे? यही सब सोच विचार

कर उन सब ने परदेश जाकर कमाने की सोची।  अपनी

अपनी  पत्नियों को समझा कर कि उनकी बहन को किसी

चीज की कमी न हो वे सब निकल पड़े।  इधर भाइयों का

जाना  था कि छहों भाभियों ने मिलकर रानी को तंग करना

शुरू कर दिया।  वे सब रानी से घर के सारेकाम करवाती

और खाने के लिए रूखा सूखा ही देती या फिर कभी कभी तो

कुछ भी नहीं देती । रानी रास्ते में जाकर अपने भाइयों के

आने की राह देखती और रोती रहती थी । घर में बस एक

छोटीभाभी थी जो उसका ख्याल रखती और अपनी

जेठानियों से छुपाकर उसे खिलाती पिलाती थी ।

निश्चित समय में जब उसके सातों भाई घर वापिस लौट कर

आए तो  अपनी बहन की दुर्दशा देखकर क्रोध से भरकर

अपनी पत्नियों से पूछा पर किसी ने जवाब नहीं दिया तब

सबसे बड़े भाई ने कहा कि 'ठीक है , अगर तुम सातों में  से

यदि किसी ने कुछ किया है तो इसका फैसला आज ही होगा ।

तुम सातों को उबलते तेल की कडाही को पार करना पडेगा ।'

                         यह सुनते ही छहों भाभियों के तो होश उड़

गए पर जो सबसे छोटी भाभी थी वह मन ही मन बहुत खुश

हुई  क्योंकि एक तो उसकी कोई गलती नहीं थी और दूसरा

कि उसे अपनी  जेठानियों से मुक्ति मिलेगी ।


छोटे भाई ने एक बड़ा सा चूल्हा बनाया और उसके ऊपर

एक बड़ी सी कढाई चढ़ाई और उसमें तेल खोलने के लिए

दिया । जब तेल पूरी तरह से खोलना शुरू हुआ तो एक एक

कर सातों भाभियों को खोलते तेल की कडाही को पार करने

के लिए कहा जाता है ।

सभी बारी बारी से तेल की कडाही को पार करना चाहती है

और उसमें गिर कर जल जाती है लेकिन सातवीं भाभी

इस परिक्षा को पार कर खुद को बेकसूर साबित करती

है।

        इस तरह सातों भाई अपनी बहन के साथ खुशी खुशी
रहते हैं ।





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