ज्ञान की प्राप्ति / Gyan ki prapti
ज्ञान की खोज में जब सिद्धार्थ ने गृहत्याग किया तो उनकी
अवस्था मात्र उन्नतीस वर्ष की थी। अपना राजमहल छोड़ने के
बाद सिद्धार्थ सर्वप्रथम अनोमा नदी के किनारे पहुंचे और
अपना सिर मुंडवाकर , भिक्षुओं वाले काषाय वस्त्र धारण
किये ।
सबसे पहले सिद्धार्थ अपनी खोज में वैशाली पहुंचे
और वहां अलार कलाम नामक संन्यासी से सांख्य दर्शन की
शिक्षा प्राप्त की।
अलार कलाम के आश्रम से शिक्षा ग्रहण कर सिद्धार्थ राजगीर
पहुंचे और वहां रूद्रकरामपुत्त के पास शिक्षा ग्रहण कर
उरूवेला की सुंदर पावन जंगलों में पहुंचे । वहां उन्हें पांच
संन्यासी मिले जिनका नाम था - कौण्डिन्य , वप्पा, भादिया
महानामा और अस्सागी । सिद्धार्थ ने उनसे योग साधना
सीखा और छः वर्ष कठिन तपस्या की। इस प्रकार कठिन
साधना के बाद भी सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति न हुई और वे
निराश होकर वहां से गया प्रदेश की ओर निकल पड़े ।
गया पहुंचने के बाद घूमते -घूमते वे एक
वट-वृक्ष के पास पहुंचे और वही ध्यानमग्न हो गए और मन
में निश्चय कर लिया कि चाहे उनके प्राण ही क्यों न निकल
जाए , तब तक समाधिस्थ रहूँगा जब तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति
न हो जाए ।
एक दिन जब सिद्धार्थ वट-वृक्ष के नीचे अपनी
समाधि में लीन थे तो उन्हें सामान्य मनुष्यों की तरह आहार
ग्रहण करने की इच्छा जागी। ठीक उसी दिन सुजाता नामक
एक स्त्री जिसने यह मन्नत मांगी थी कि जब उसे पुत्र की
प्राप्ति होगी, वह वट-वृक्ष में गाय के दूध का बना खीर अर्पण
करेगी । उसकी यह मन्नत पूरी हुई फलस्वरूप सुजाता उस
दिन वट-वृक्ष को खीर अर्पण करने के लिए उसी वट-वृक्ष के
पास आई जहां सिद्धार्थ अपने समाधि में लीन थे । एक
सन्यासी को तपस्या करते देख सुजाता को लगा कि शायद
उसका भोग लेने के लिए साक्षात वट-वृक्ष के देवता बैठे हैं ।
वह बहुत खुश हुई और सिद्धार्थ को खीर अर्पण किया ।
सुजाता सिद्धार्थ से बोली - 'जिस प्रकार मेरी अभिलाषा पूर्ण
हुई हैं आपकी भी हो ।'
खीर ग्रहण करने से पहले सिद्धार्थ
ने पास ही में निरंजना नदी में स्नान किया है फिर अपनी
समाधि में लीन हो गए। उस दिन खीर खाने के बाद सिद्धार्थ
को परम संतुष्टि मिलती है । तत्पश्चात सात दिन और सात
रात्रि बीतने के बाद आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा को 35 वर्ष
की आयु में सिद्धार्थ को उसी वट-वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति
हुई और सिद्धार्थ "बुद्ध " कहलाए । उस वट-वृक्ष को
"बोधिवृक्ष'' और स्थान को "बोधगया" नाम से जाना गया ।
Lord Buddha under bodhi tree
महात्मा बुद्ध के जीवन से प्रेरित कहानियाँ (जातक कथाएँ / Jatak katha)
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