भीष्म प्रतिज्ञा / Bhisma pratigya
पौराणिक कथा > महाभारत >भीष्म पितामह
गंगा पुत्र देवव्रत जिन्हें भीष्म पितामह के नाम पर जाना जाता
है अपनी अखंड प्रतिज्ञा और उस प्रतिज्ञा पर आजीवन टिके
रहने के कारण ही यह नाम उन्हें दिया गया ।
हस्तिनापुर के राजा और देवव्रत के
पिता शांतनु ने देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर
दिया था , तब महाराज शांतनु काफी वृद्घ हो चले थे ।
एक बार कि बात है , शांतनु विहार के लिए यमुना नदी के
किनारे निकले थे। वहां नौका विहार में उन्हें एक स्त्री मिली
जिसे देखकर शांतनु उसपर मोहित हो गए । उन्होंने उस
कन्या का परिचय पूछा तो उस कन्या ने अपने आपको
एक निषाद कन्या तथा अपना नाम सत्यवती बतलाया ।
परिचय पाकर शांतनु ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा
जिसपर सत्यवती बोली कि वह उसके पिता से इस बारे में
बात करें ।
मौका देखकर महाराज शांतनु सत्यवती के पिता के
पास यह प्रस्ताव लेकर गए । निषादराज हस्तिनापुर के
महाराज द्वारा अपनीपुत्री के लिए विवाह प्रस्ताव पाकर बहुत
खुश हुए लेकिन उन्होंने कहा कि वह विवाह के लिए तैयार है
परन्तु उनकी एक शर्त है । वे अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह
उनसे तब करेंगे जब वे वचन दे कि सत्यवती की संतान ही
हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठेगी ।
निषादराज की बात सुनकर शांतनु दुखी हो गए और कहा कि
वे अपने पुत्र देवव्रत को पहले ही राजगद्दी सौंप चुके हैं और
अब वे उसका हक नहीं छीन सकते । इस प्रकार शांतनु
वहां से अपने राजमहल को प्रस्थान करते हैं और उस दिन के
पश्चात गुससुम रहने लगते है। देवव्रत को अपने पिता की
हालत ठीक नहीं लगी तो उन्होंने इसका कारण महाराज के
मंत्री से पूछा। मंत्री ने सत्यवती से उनके प्रेम और निषादराज
के शर्त के बारे में युवराज को बताया।
देवव्रत अपने पिता की दशा देखकर बहुत दुखी हुए और इस
कारण वे निषादराज के पास पहुंचे और उनसे विवाह के लिए
निवेदन किया। निषादराज ने युवराज देवव्रत के सामने भी
वही बात दोहराई । युवराज अपने पिता की खुशी के लिए
अपना हक सत्यवती के पुत्रों को देने के लिए तैयार हो गए
परन्तु फिर भी निषादराज विवाह के लिए सहमत न हुए ।
अब उनहोंने यह मांग की कि अगर युवराज के पुत्रों ने
सत्यवती के पुत्रों की राजगद्दी के लिए हत्या कर दी तो?
इसपर युवराज देवव्रत ने निषादराज के सामने आजीवन
ब्रह्मचार्य व्रत धारण करने की अखंड प्रतिज्ञा ली और भीष्म
पितामह के रूप में कुरू वंश की सेवा अपने अंतिम सांस
तक की ।
Bhisma pitamah image
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है अपनी अखंड प्रतिज्ञा और उस प्रतिज्ञा पर आजीवन टिके
रहने के कारण ही यह नाम उन्हें दिया गया ।
हस्तिनापुर के राजा और देवव्रत के
पिता शांतनु ने देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर
दिया था , तब महाराज शांतनु काफी वृद्घ हो चले थे ।
एक बार कि बात है , शांतनु विहार के लिए यमुना नदी के
किनारे निकले थे। वहां नौका विहार में उन्हें एक स्त्री मिली
जिसे देखकर शांतनु उसपर मोहित हो गए । उन्होंने उस
कन्या का परिचय पूछा तो उस कन्या ने अपने आपको
एक निषाद कन्या तथा अपना नाम सत्यवती बतलाया ।
परिचय पाकर शांतनु ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा
जिसपर सत्यवती बोली कि वह उसके पिता से इस बारे में
बात करें ।
मौका देखकर महाराज शांतनु सत्यवती के पिता के
पास यह प्रस्ताव लेकर गए । निषादराज हस्तिनापुर के
महाराज द्वारा अपनीपुत्री के लिए विवाह प्रस्ताव पाकर बहुत
खुश हुए लेकिन उन्होंने कहा कि वह विवाह के लिए तैयार है
परन्तु उनकी एक शर्त है । वे अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह
उनसे तब करेंगे जब वे वचन दे कि सत्यवती की संतान ही
हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठेगी ।
निषादराज की बात सुनकर शांतनु दुखी हो गए और कहा कि
वे अपने पुत्र देवव्रत को पहले ही राजगद्दी सौंप चुके हैं और
अब वे उसका हक नहीं छीन सकते । इस प्रकार शांतनु
वहां से अपने राजमहल को प्रस्थान करते हैं और उस दिन के
पश्चात गुससुम रहने लगते है। देवव्रत को अपने पिता की
हालत ठीक नहीं लगी तो उन्होंने इसका कारण महाराज के
मंत्री से पूछा। मंत्री ने सत्यवती से उनके प्रेम और निषादराज
के शर्त के बारे में युवराज को बताया।
देवव्रत अपने पिता की दशा देखकर बहुत दुखी हुए और इस
कारण वे निषादराज के पास पहुंचे और उनसे विवाह के लिए
निवेदन किया। निषादराज ने युवराज देवव्रत के सामने भी
वही बात दोहराई । युवराज अपने पिता की खुशी के लिए
अपना हक सत्यवती के पुत्रों को देने के लिए तैयार हो गए
परन्तु फिर भी निषादराज विवाह के लिए सहमत न हुए ।
अब उनहोंने यह मांग की कि अगर युवराज के पुत्रों ने
सत्यवती के पुत्रों की राजगद्दी के लिए हत्या कर दी तो?
इसपर युवराज देवव्रत ने निषादराज के सामने आजीवन
ब्रह्मचार्य व्रत धारण करने की अखंड प्रतिज्ञा ली और भीष्म
पितामह के रूप में कुरू वंश की सेवा अपने अंतिम सांस
तक की ।
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