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वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal image वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसकी एक लडक़ी थी , जिसका नाम था , उन्मादिनी ।  जब वह बड़ी हुई तो सेठ ने राजा के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा। राजा ने तीन दासियों को उसे देखकर आने के लिए कहा ।  उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो वे उसके रूप पर मुग्ध हो गई , लेकिन यह सोचकर कि कहीं राजा उसके वश में न हो जाए , आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है । राजा ने सेठ को मना कर दिया।  इसके बाद सेठ ने राजा के सेनापति बलभद्र से उसका विवाह कर दिया । वे दोनों बड़े प्रेम से रहने लगे । एक दिन राजा की सवारी उस रास्ते से निकली । उन्मादिनी अपने कोठे पर खड़ी थी । राजा की निगाह उस पर पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया।  उसने पता लगाया तो पता चला कि सेठ की लड़की है। राजा ने सोचा कि हो न हो जिन दासियों को मैंने देखने भेजा था , उन्होंने छल किया । राजा ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने सारा सच बोल दिया । इतने में सेनापति वहां आ गया । उसे राजा की बैचेनी मालूम हुई । उसने कहा- स्वामी , उन्मादिनी को आप ले लीजिए । राजा ने गुस्सा होकर कहा

वेताल पच्चीसी - सोलहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal in hindi वेताल पच्चीसी - सोलहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी हिमालय पर्वत पर गंधर्वो का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके एक लडक़ा था , जिसका नाम जीमूतवाहन था । बाप-बेटे दोनों भले थे । धर्म-कर्म में लगे रहते थे । इससे प्रजा के लोग बहुत स्वछन्द हो गए थे और एक दिन राजा के महल को घेर लिया ।  राजकुमार ने यह देखा तो अपने पिता से कहा आप चिंता न करें , मैं सबको मार भगाऊंगा ।  राजा बोला - नही ऐसा मत करों।  युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताए थे ।  इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बनाकर रहने लगा । वहां जीमूतवाहन की एक ऋषि के पुत्र से दोस्ती हो गई । एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मंदिर में गए तो वहां दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली । दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए । जब कन्या के पिता को पता चला तो उसने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया।   एक रोज की बात है, जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफेद ढ़ेर दिखाई दिया। पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत नाग आते हैं , जिन्हें गरूड़ खा लेता है । यह ढ़ेर उन्हीं हड्डि

वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर में यशकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके चन्द्रप्रभा नाम की रानी और शशिप्रभा नाम की लड़की थी ।  जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक बार वसन्त उत्सव देखने बाग में गई । वहां एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था । दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे । इसी बीच एक पागल हाथी दौडता हुआ वहां आया । ब्राह्मण के लड़के ने राजकुमारी को हाथी से बचा दूर उठाकर रख दिया । शशिप्रभा महल में चली गई पर वह ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी । उधर ब्राह्मण के लड़के की भी बुरी दशा थी ।  वह एक सिद्धगुरू के पास पहुंचा और अपनी इच्छा बताई । उसने एक योग गुटिका अपने मुंह में रखकर ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया और एक गुटिका लड़के के मुंह मे रखकर उसे एक सुंदर लड़की बना दिया।    राजा के पास जाकर कहा - मेरा एक ही बेटा है । उसके लिए मैं इस लड़की को लाया था , पर लड़का न जाने कहाँ चला गया । आप इसे यहां रख ले । मैं लड़के को ढूँढने जाता हूँ । मिल जाने पर इसे ले जाऊंगा ।  सिद्ध गुरू चला गया और लड़की के भेष में ब्राह्मण का लड़का राजकुमार

वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal stories in hindi वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी अयोध्या नगरी में वीरकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार रहता था , जिसके रत्नवती नाम की एक लडकी थी । वह बहुत सुन्दर थी । वह पुरुष के भेष में रहा करतीं थी और किसी से विवाह करना नहीं चाहती थी । उसका पिता बड़ा दुखी था ।  इसी बीच नगर में खूब चोरियां होने लगी । प्रजा दुखी हो गई । कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ा न गया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकल पड़ा । एक रात राजा जब भेष बदले घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया । राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया ।  चोर ने कहा - तुम तो मेरे साथी हुए । आओं मेरे घर चलो ।  दोनों घर पहुंचे । उसे बिठाकर चोर किसी काम से बाहर गया । इसी बीच एक दासी आयी और बोली - "तुम यहाँ क्यों आएं हो ? चोर तुम्हें मार डालेगा । भाग जाओं । " राजा ने ऐसा ही किया । फिर उसने फौज लेकर चोर का घर चारों ओर से घेर लिया । जब चोर ने यह देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया । दोनों की खूब लडाई हुई । अंत में चोर हार गया । राजा उसे पकड़कर लाया और सूल

वेताल पच्चीसी - तेरहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल - तेरहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी बनारस में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था । उसके हरिदास नामक एक पुत्र था । हरिदास की बड़ी सुंदर पत्नी थी , लावण्यवती। एक दिन वे महल के छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला । वह लावण्यवती के रूप पर मोहित हो उसे उड़ाकर ले गया । जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी पत्नी वहां नहीं है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया । लोगो के समझाने पर वह मान तो गया  , लेकिन यह सोचकर कि तीर्थं करने से पाप कम हो और स्त्री मिल जाए तो वह घर से निकल पड़ा । चलते-चलते वह किसी गांव के एक ब्राह्मण के घर पहुंचा । उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे एक कटोरा भर के खीर दिया और तालाब किनारे बैठकर खाने के लिए कहा । हरिदास खीर का कटोरा लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहां रखकर तालाब में हाथ मुंह धोने गया । इसी बीच एक बाज किसी सांप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा और जब वह सांप को खाने लगा तो सांप के मुंह से जहर टपपककर कटोरे में गिर गया । हरिदास को कुछ पता नहीं था।  वह उस खीर को खा गया।  जहर का असर होने पर वह तड़पने

वेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - बारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी किसी जमाने में अंगदेश में यशकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके दीर्घदर्शी नामक एक बड़ा चतुर दीवान था । राजा बड़ा विलासी था । राज्य का सारा बोझ वह दीवान पर डालकर विलास में डूब गया था।  दीवान को बहुत दुख हुआ । उसने देखा कि राजा के साथ सब जगह उसकी भी निंदा हो रही है इसलिए वह तीर्थ का बहाना बनाकर निकल गया। चलते-चलते उसे रास्ते में एक शिव मंदिर मिला।  उसी समय निछिदत्त नामक एक सौदागर वहां आया और दीवान के पूछने पर उसने बताया कि वह सुवर्णद्वीप में व्यापार करने जा रहा है । दीवान भी उसके साथ हो लिया।   दोनों जहाज में सवार होकर सुवर्णद्वीप गये और वहाँ व्यापार कर धन कमाके लौटे । रास्ते में समुद्र में दीवान को एक कल्पवृक्ष दिखाई दिया । उसकी मोटी-मोटी शाखाओं पर रत्नों से जुड़ा एक पलंग बिछा था । उस पर एक रूपवती कन्या बैठी वीणा बजा रही थी । थोड़ी देर बाद वह गायब हो गई । पेड़ भी नही रहा । दीवान बड़ा चकित हुआ ।  दीवान ने अपने नगर में लौटकर सारा हाल कह सुनाया । इस बीच इतने दिनों से राज्य का भार संभालकर राजा सुधर गया था उसने विलासिता छोड़ दिया था ।

वेताल पच्चीसी - ग्यारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - ग्यारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी गौड़ देश में वर्धमान नाम का एक नगर था , जिसमें गुणशेखर नामक राजा राज्य करता था । उसके अभयचन्द्र नामक दीवान था । उस दीवान के समझाने से राजा ने अपने राज्य में शिव और विष्णु की पूजा , गोदान , भूदान , पिण्डदान आदि सब बंद करवा दिया । नगर में डोंडी पिटवा दी कि नगर में जो कोई यह सब काम करेगा उसका सब कुछ छीन कर नगर से बाहर कर दिया जाएगा ।  एक दिन दीवान ने कहा - महाराज ! अगर कोई किसी को दुख पहुंचाता है और उसके प्राण लेता है तो पाप से उसका जन्म मरण नहीं छूटता । वह बार-बार जन्म लेता है और मरता है । इसलिए मनुष्य का जन्म पाकर धर्म बढ़ना चाहिए । आदमी को हाथी से लेकर चींटी तक की रक्षा करनी चाहिए । जो लोग दूसरे के दर्द को नही समझते और उन्हें सताते है , उनकी इस पृथ्वी पर उम्र घटती जाती है और वे लोग इस धरती पर लूल्हे , लंगड़े , काने , बौने होकर जन्म लेते हैं ।  राजा ने कहा - ठीक है । अब दीवान ने जैसा कहा राजा वैसे ही करता । दैवयोग से राजा एक दिन मर गया । उसकी जगह उसका पुत्र धर्मराज गद्दी पर बैठा । एक दिन उसने किसी बात पर नाराज होकर दीवान को नगर स

वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी मदनपुर में वीरवर नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में एक वैश्य था , जिसका नाम हिरण्यदत्त था । उसके मदनसेना नामक एक कन्या थी ।  एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग में गई । वहां संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था । वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा । घर लौटकर वह उसके लिए सारी रात बैचैन रहा । अगले दिन फिर वह बाग में गया । वहां मदनसेना अकेली बैठी थी ।  उसने उसके पास जाकर कहा - तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण त्याग दूंगा ।  मदनसेना बोली - आज से पांचवे दिन मेरी शादी हैं । मैं तुम्हारी नहीं हो सकती ।  वह बोला - मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता ।  मदनसेना डर गयी । बोली - अच्छी बात है , मेरा विवाह हो जाने दो मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे मिलने आऊंगी ।  वचन देकर मदनसेना डर गयी । उसका विवाह हो गया और जब वह अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली - "आप मुझपर विश्वास करे और अभय दान दे तो एक बात कहूँ !" पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कही । सुनकर पति ने सोचा

वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चम्मापुर नामक एक नगर था , जिसमें चम्पकेश्वर नामक राजा राज्य करता था । उसके सुलोचना नाम की एक रानी थी और त्रिभुवनसुंदरी नाम की एक लडकी थी। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया।  राजा और रानी को उसके विवाह की चिंता हुई । चारों ओर इसकी खबर फैल गई । बहुत से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेजी , परंतु राजकुमारी ने किसी को भी पसंद नहीं किया ।  राजा ने कहा - बेटी, कहो तो स्वयंवर का आयोजन करूँ ? लेकिन वह राजी नहीं हुई । आखिर राजा ने तय किया कि उसका विवाह उस आदमी से करेगा जो रूप , बल और विद्या में बढ़ा चढ़ा होगा ।  एक दिन राजा के पास चार देश से चार वर आए ।  एक ने कहा - मैं एक कपड़ा बनाकर पांच लाख में बेचता हूँ, एक लाख देवता को चढ़ाता हूँ , एक लाख अपने अंग लगाता हूँ , एक लाख स्त्री के लिए रखता हूँ और एक लाख अपने खाने-पीने का खर्च चलाता हूँ । इस विद्या को कोई ओर नही जानता ।  दूसरा बोला - मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ । तीसरा बोला - मैंने इतना शास्त्र पढ़ा है कि कोई ओर मेरा मुकाबला नहीं कर सकता है । 

वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  अंग देश के एक गाँव में एक धनी ब्राह्मण रहता था । उसके तीन पुत्र थे । एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ कराना चाहा । उसके लिए एक कछुएं की जरूरत थी । उसने तीनों भाईयों को कछुआ लाने के लिए कहा । वे तीनों समुद्र तट पर पहुंचे । वहां उन्हें एक कछुआ मिल गया ।  बड़े भाई ने कहा - मैं भोजनचंग हूँ इसलिए कछुएं को नही छुऊंगा ।  मझला बोला - मैं नारीचंग हूं इसलिए नही छुऊंगा ।  सबसे छोटा बोला - मैं शैयाचंग हूँ सो मैं नहीं ले जाऊंगा ।  वे तीनों इस बहस में पड़ गए कि कौन उनमें से बढ़कर है । जब वे आपस में फैसला न कर सकें तो राजा के पास पहुंचे ।  राजा ने कहा - आप लोग रूके । मैं तीनों की अलग-अलग जांच करूंगा ।  इसके बाद राजा ने बढिया भोजन तैयार करवाया और तीनों खाने बैठे ।  सबसे बड़े ने कहा कि मैं इसे नहीं खाऊंगा इसमें मुर्दे की गंध आती हैं।  वह उठकर चला गया । राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन शमशान वाले खेत का बना है।  राजा ने उससे कहा - तुम सचमुच में भोजनचंग हो , तुम्हें भोजन की पहचान है ।  रात के समय राजा ने एक खूबसूरत वेश्या को मँझले भाई के पास भेजा । ज

वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  मिथलावती नाम की एक नगरी थी । उसमें गुणधिप नाम का राजा राज्य करता था । उसकी सेवा करने के लिए दूर देश से एक राजकुमार आया । वह बराबर कोशिश करता रहा , परंतु राजा से उसकी भेंट न हुई । जो कुछ वह अपने साथ लाया था सब समाप्त हो गया । एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया । राजकुमार भी साथ हो लिया । चलते-चलते राजा वन में पहुंचा । वहां उसके नौकर-चाकर बिछुड़ गए । राजा के साथ वह राजकुमार अकेला रह गया । उसने राजा को रोका ।  राजा ने उसकी ओर देखकर कहा - तू इतना कमजोर क्यों हो रहा है ?  उसने कहा - मेरे कर्म का दोष है । मैं जिस राजा के पास रहता हूँ वह हजारों को पालता है , पर उसकी निगाह मेरी ओर नही जाती । राजन् , छः बातें इंसान को हल्का करतीं हैं - खोटे नर की प्रीति , बिना कारण हंसी , स्त्री से विवाद , असज्जन स्वामी की सेवा , गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा । और हे राजन् , ये पांच चीजें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है - आयु , कर्म , धन , विद्या और यश । राजन् जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है , तब तक उसके बहुत से दास रहते हैं ।

वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी धर्मपुर नामक नगरी में धर्मशील नाम का राजा राज्य करता था ।उसके अन्धक नामक एक दीवान था ।  एक दिन दीवान ने कहा - महाराज , देवी का एक मंदिर बनवाया जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा ।  राजा ने ऐसा ही किया । एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा । राजा को कोई संतान न थी । उसने देवी से पुत्र मांगा । देवी के वरदान अनुसार राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई । सारे नगर में खुशियाँ मनाई गई ।  एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया । उसकी निगाह देवी के मंदिर पर पड़ी । उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई  दी , जो बड़ी सुंदर थी । उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने देवी के मंदिर जाकर प्रार्थना की , "हे देवी अगर यह लडक़ी मुझे मिल गई तो अपना शीश तुम्हें अर्पित कर दूंगा "।  इसके बाद वह हर घड़ी बैचैन रहने लगा । उसके मित्र ने उसके पिता को सब हाल कह सुनाया । अपने पुत्र की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उससे अनुरोध किया । इस तरह दोनों का विवाह हो गया ।  विवाह के कुछ दिन बाद लड़की

वेताल पच्चीसी - पांचवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पांचवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी उज्जैन में महाबल नामक राजा राज्य करता था।  उसके हरिदास नामक एक दूत था , जिसकी महादेवी नाम की एक बड़ी सुंदर कन्या थी । जब वह विवाह योग्य हुई तो उसके पिता को उसकी चिंता हुई । इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहां पहुंचा । राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया ।  बोला - आप मुझे अपनी लड़की दे दे ।  हरिदास ने कहा - मैं अपनी लड़की उसे दूंगा जिसमें सभी गुण हो ।  ब्राह्मण ने कहा - मेरे पास एक ऐसा रथ है , जिसमें बैठकर जहां भी जाना चाहो घड़ी भर में पहुंच जाओगे ।  हरिदास बोला - ठीक है , उसे कल ले आना ।  अगले दिन दोनों रथ में बैठकर उज्जैन आ पहुंचे । दैवयोग से पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन के लिए किसी ओर लड़के को ले आया था और हरिदास की स्त्री ने भी एक लड़के को पसंद कर लिया था । इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गए थे। हरिदास सोचने लगा कि अब क्या करें ? लड़की एक है, और लड़के तीन ।  इसी बीच एक राक्षस आया और लड़की को उठाकर विंध्याचल पर्वत पर ले गया । तीनों लड़को में एक ज्ञानी था तो उसने तुरं

वेताल पच्चीसी - चौथी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - चौथी कहानी  भोगवती नामक एक नगरी थी । उसमें राजा रूपसेन राज करता था । उसके पास चिंतामणि नामक एक तोता था ।  एक दिन राजा ने उससे पूछा - हमारा विवाह किसके साथ होगा ?  तोते ने कहा - मगध देश की राजकुमारी चन्द्रावती के साथ।  राजा ने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा तो उन्होंने भी वही कहा । उधर मगध देश की राजकन्या के पास एक मैना थी । उसका नाम था मदन मञ्जरी । एक दिन राजकन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ ।  इसके बाद दोनों का विवाह हो गया । रानी के साथ उसकी मैना भी आ गई । राजा-रानी ने तोता-मैना का विवाह कराकर एक पिंजड़े में रख दिया । एक दिन कि बात है , तोता मैना में बहस हो गई ।  मैना ने कहा - आदमी बड़ा पापी , दगाबाज और अधर्मी होता है ।  तोते ने कहा - स्त्री झूठी , लालची और हत्यारी होती है ।  दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने पूछा - क्यों तुम दोनों क्यों लड़ते हो ? मैना ने कहा - महाराज , मर्द बड़े बुरे होते हैं । इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनाई ।  इलापुर नगर में महाधन नामक एक सेठ रहता था । विवाह के बहुत दिनों बाद उसके घर

वेताल पच्चीसी - तीसरी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल की कहानी वेताल पच्चीसी - तीसरी कहानी  वर्धमान नगर में रूपसेन नामक राजा राज्य करता था । एक दिन उसके दरबार में वीरवर नामक एक आदमी नौकरी के लिए आया । राजा ने उससे पूछा कि उसे खर्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया , हजार तोले सोना।  सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ ।  राजा ने पूछा - तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं ? वीरवर - मेरी स्त्री , बेटी और बेटा ।  राजा को ओर भी अचम्भा हुआ । आखिर चार जने इतने धन का क्या करेंगे ? फिर भी उसकी बात मान ली और उसे नौकरी पर रख लिया ।  उस दिन से वीरवर रोज हजार तोले सोना भण्डारी से लेकर जाता।  उसमें से आधा ब्राह्मणों में बाँट देता , बाकी के दो हिस्से करके एक मेहमानों , संन्यासीयो को दे देता और दूसरे से भोजन बनवाकर पहले गरीबों को खिलाता , उसके बाद जो बचता उससे अपने बच्चों और स्त्री को खिलाता और आप खाता । काम यह था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चौकीदारी करता । राजा को जब कभी जरूरत होती , वह तुरंत हाज़िर होता ।  एक आधी रात के समय राजा को मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज आई । उसने वीरवर को बुलाया तो वह आया । राजा ने कहा - जाओं  , पता लगा

वेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल की कहानी वेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी  यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था । उस नगर में गणाधिपति नामक राजा राज्य करता था । उसी नगर में केशव नामक एक ब्राह्मण भी रहता था । ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था । उसकी एक लडक़ी थी , जिसका नाम मालती थी , वह बड़ी रूपवती और गुणवती थी । जब वह विवाह के योग्य हुुई तो उसके माता-पिता और भाई को उसके विवाह की चिंता हुई । संयोग से एक दिन ब्राह्मण जब अपने किसी यजमान की बारात में गया और भाई पढने गया था तभी उसके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया।  लडक़ी की माता ने उसके रूप और गुणों को देखकर कहा कि मैं अपनी पुत्री का विवाह तुमसे ही करूंगी । होनहार की बात कि दूसरे ओर लड़की के पिता को भी एक अच्छा ब्राह्मण लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी वही वचन दे दिया । तीसरे ब्राह्मण का लड़का यानी कि लड़की का भाई जहां पढ़ने गया था उसने वहां एक लड़के से यही वचन दे दिया ।  जब कुछ समय बाद माता-पिता और भाई एक जगह इकट्ठे हुए तो देखते हैं कि एक तीसरा लड़का भी है । दो तो पहले से ही है । अब क्या हो ? ब्राह्मण , ब्राह्मणी और उसका लड़का तीनों सोच में पड़

वेताल पच्चीसी - पहली कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पहली कहानी विक्रम वेताल की कहानी काशी में प्रतापमुकुट नामक एक राजा राज्य करता था । उसका वज्रमुकुट नामक एक पुत्र था।  एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को लेकर जंगल में शिकार खेलने के लिए गया । घूमते-घूमते उन्हें एक तालाब मिला । उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे । किनारों पर घने पेड़ थे , जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे । दोनों मित्र वहां रूक गए और तालाब के पानी में हाथ मुंह धोकर ऊपर महादेव के मंदिर गए ।  घोड़ो को उन्होंने मंदिर के बाहर बांध दिया। जब वे मंदिर में दर्शन करके आए तो देखते हैं कि तालाब में एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई थी । दीवान का लड़का तो वही एक पेड़ के नीचे बैठा रहा लेकिन राजकुमार से न रहा गया । वह आगे बढ़ । राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो वह मोहित हो गया । राजकुमारी भी उसकी तरफ देखती रही । फिर उसने अपने जुड़े में से एक कमल का फूल निकाला , कान से लगाया , दांत से कुतरा , पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगाया , अपनी सहेलियों के साथ चली गई।   उसके जाने से राजकुमार उदास हो अपने मित्र के पास गया और उसे सारी बातें बता दी और कहा मैं राजक

सर्वश्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ | Best hindi stories

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वेताल पच्चीसी - प्रारंभ की कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal in hindi वेताल पच्चीसी - प्रारंभ की कहानी | विक्रम - वेताल की कहानियाँ हिन्दी में  वेताल पच्चीसी परिचय | Betal Pachisi Introduction वेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रंथ है । इसके रचयिता बेतालभट्ट राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे । ये कथाएं राजा विक्रमादित्य के न्याय-शक्ति का बोध कराती है । वेताल हर बार राजा विक्रमादित्य से ऐसा प्रश्न करता कि उसे जवाब देना पड़ता था । उसकी यह शर्त थी कि जब राजा बोलेगा वह फिर से पेड़ पर जा लटकेगा । लेकिन यह जानते हुए भी राजा विक्रमादित्य से चुप न रहा जाता ।  वेताल पच्चीसी आरंभ | Betal Pachisi stories बहुत पुरानी बात है , धारा नगरी में गंधर्वसेन नामक राजा राज्य करता था । उसके चार रानियां थी । उनके छः पुत्र थे ।  जब राजा गंधर्वसेन की मृत्यु हो गई तो उसका सबसे बड़ा पुत्र शंख गद्दी पर बैठा । उसने कुछ दिन राज किया , लेकिन उसके छोटे भाई विक्रमादित्य ने उसकी हत्या कर दी और खुद गद्दी पर बैठा । उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता ही चला गया । एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए । जिन देशों के नाम उसने सुन रखे हैं , उन्हें देखन

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | prithviraj chahuhan's biography in hindi

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पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | Prithviraj Chahuhan's biography in hindi पृथ्वीराज तृतीय जिन्हें पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है , चौहान वंश के राजा तथा भारतवर्ष के सबसे प्रसिद्ध राजाओं में एक थे । वे अंतिम हिन्दू सम्राट थे जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर राज किया । उनकी राजधानी अजमेर थी । पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूरदेवी के घर हुआ । सोमेश्वर चौहान की मृत्यु 1177 ईसवीं में हुई थी उस समय पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष के थे । पृथ्वी राज जो उस समय नाबालिग थे अपनी माता के साथ गद्दी पर बैठे।  उनका शासनकाल 1178 ईसवीं से 1192 ईसवीं तक का था। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा भी कहा जाता है।  वेे बचपन से ही एक कुुुशल योद्धा थे । उन्होंने अपने बाल्यकाल में ही शब्दभेदी बाण का अभ्यास किया था। वेे अश्व और हाथी नियंत्रण विद्या में भी माहिर थे ।   Prithviraj chahuhan's biography पृथ्वीराज चौहान का जन्म ( Birth of prithviraj chahuhan) राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूर देवी को बारह वर्ष के लंबे इंतजार के बाद बेटे पृथ्वीराज को गोद में लेने का सौभाग्य मिला