वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
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वेताल पच्चीसी - सत्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसकी एक लडक़ी थी , जिसका नाम था , उन्मादिनी । जब वह बड़ी हुई तो सेठ ने राजा के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा। राजा ने तीन दासियों को उसे देखकर आने के लिए कहा । उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो वे उसके रूप पर मुग्ध हो गई , लेकिन यह सोचकर कि कहीं राजा उसके वश में न हो जाए , आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है । राजा ने सेठ को मना कर दिया।
इसके बाद सेठ ने राजा के सेनापति बलभद्र से उसका विवाह कर दिया । वे दोनों बड़े प्रेम से रहने लगे ।
एक दिन राजा की सवारी उस रास्ते से निकली । उन्मादिनी अपने कोठे पर खड़ी थी । राजा की निगाह उस पर पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने पता लगाया तो पता चला कि सेठ की लड़की है। राजा ने सोचा कि हो न हो जिन दासियों को मैंने देखने भेजा था , उन्होंने छल किया । राजा ने उन्हें बुलाया तो उन्होंने सारा सच बोल दिया । इतने में सेनापति वहां आ गया । उसे राजा की बैचेनी मालूम हुई ।
उसने कहा- स्वामी , उन्मादिनी को आप ले लीजिए ।
राजा ने गुस्सा होकर कहा - मैं अधर्मी हूँ कि पराई स्त्री को ले लूँ ?
राजा को इतनी व्याकुलता हुई कि वह कुछ दिन में मर गया । सेनापति ने अपने गुरु को सब हाल कहा और पूछा कि अब मैं क्या करूँ ?
गुरु ने कहा - सेवक का धर्म है अपने स्वामी के लिए जान दे दे ।
राजा की चिता तैयार हुई । सेनापति वहां गया और कूद पड़ा । जब उन्मादिनी को यह बात मालूम हुई तो वह भी अपना धर्म समझकर चिता में कूद पड़ी ।
इतना कहकर वेताल बोला - बताओं राजा और सेनापति में कौन ज्यादा साहसी था ।
राजा ने कहा - राजा अधिक साहसी था , क्योंकि उसने राज धर्म पर दृढ़ रहने के लिए उन्मादिनी को उसके पति के कहने पर भी स्वीकार नही किया और अपने प्राण त्याग दिए । सेनापति कुलीन सेवक था । अपने स्वामी की भलाई में उसका प्राण देना कोई अचरज की बात नही । असली काम तो राजा ने किया जान देकर भी राज धर्म नही छोड़ा ।
जवाब सुनकर वेताल पेड़ पर जा लटका । राजा उसे पुनः पकड़कर लाया और तब उसने अगली कहानी सुनाई ।
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