वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
Vikram Betal stories in hindi |
वेताल पच्चीसी - चौदहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
अयोध्या नगरी में वीरकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक साहूकार रहता था , जिसके रत्नवती नाम की एक लडकी थी । वह बहुत सुन्दर थी । वह पुरुष के भेष में रहा करतीं थी और किसी से विवाह करना नहीं चाहती थी । उसका पिता बड़ा दुखी था ।
इसी बीच नगर में खूब चोरियां होने लगी । प्रजा दुखी हो गई । कोशिश करने पर भी जब चोर पकड़ा न गया तो राजा स्वयं उसे पकड़ने के लिए निकल पड़ा । एक रात राजा जब भेष बदले घूम रहा था तो उसे परकोटे के पास एक आदमी दिखाई दिया । राजा चुपचाप उसके पीछे चल दिया ।
चोर ने कहा - तुम तो मेरे साथी हुए । आओं मेरे घर चलो ।
दोनों घर पहुंचे । उसे बिठाकर चोर किसी काम से बाहर गया । इसी बीच एक दासी आयी और बोली - "तुम यहाँ क्यों आएं हो ? चोर तुम्हें मार डालेगा । भाग जाओं । "
राजा ने ऐसा ही किया । फिर उसने फौज लेकर चोर का घर चारों ओर से घेर लिया । जब चोर ने यह देखा तो वह लड़ने के लिए तैयार हो गया । दोनों की खूब लडाई हुई । अंत में चोर हार गया । राजा उसे पकड़कर लाया और सूली पर लटकाने का हुक्म दे दिया ।
संयोग से रत्नवती ने उसे देखा और उसपर मोहित हो गयी ।
पिता से बोली - मैं ब्याह करूंगी तो इसके साथ नही तो मर जाऊंगी ।
पर राजा ने उसकी बात न मानी और चोर को सूली पर लटका दिया । सूली पर लटकने से पहले तो चोर बहुत रोया , फिर खूब हँसा। रत्नवती वहां पहुंची और चोर के सिर को लेकर सती होने के लिए चिता में बैठ गई ।
उसी समय देवी ने आकाशवाणी की - मैं तेरी पतिभक्ति से खुश हूँ । जो चाहों सो मांगो ।
रत्नवती ने कहा - मेरे पिता को कोई पुत्र नही है । सो वर दीजीए उन्हें सौ पुत्र हो ।
देवी प्रकट होकर बोली - यही होगा कुछ और मांगो ।
वह बोली - मेरे पति जीवित हो जाए ।
देवी ने उसे जीवित कर दिया। दोनों का विवाह हो गया। राजा को जब यह बात पता चली तो उसने चोर को अपना सेनापति बना लिया ।
इतनी कहानी सुनाकर वेताल ने कहा - हे राजन् । बताओं कि सूली पर चढ़ने से पहले चोर क्यों जोर-जोर से रोया और हंसते-हंसते मर गया ।
राजा ने कहा - रोया तो इसलिए कि वह रत्नदत्त का कुछ भला न कर सका । हँसा इसलिए कि रत्नवती बड़े-बड़े राजाओं और धनिकों को छोड़कर उस पर मुग्ध होकर मरने के लिए तैयार हो गई । स्त्री के मन की गति को कोई नहीं समझ सकता ।
इतना सुनकर वेताल गायब हो गया और पेड़ पर जा लटका । राजा ने उसे फिर से उतारा और लेकर चला । तब उसने पन्द्रहवी कहानी सुनाई ।
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