वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
वेताल पच्चीसी - पन्द्रहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी
नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर में यशकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसके चन्द्रप्रभा नाम की रानी और शशिप्रभा नाम की लड़की थी ।
जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक बार वसन्त उत्सव देखने बाग में गई । वहां एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था । दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे । इसी बीच एक पागल हाथी दौडता हुआ वहां आया । ब्राह्मण के लड़के ने राजकुमारी को हाथी से बचा दूर उठाकर रख दिया । शशिप्रभा महल में चली गई पर वह ब्राह्मण के लड़के के लिए व्याकुल रहने लगी ।
उधर ब्राह्मण के लड़के की भी बुरी दशा थी । वह एक सिद्धगुरू के पास पहुंचा और अपनी इच्छा बताई । उसने एक योग गुटिका अपने मुंह में रखकर ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया और एक गुटिका लड़के के मुंह मे रखकर उसे एक सुंदर लड़की बना दिया।
राजा के पास जाकर कहा - मेरा एक ही बेटा है । उसके लिए मैं इस लड़की को लाया था , पर लड़का न जाने कहाँ चला गया । आप इसे यहां रख ले । मैं लड़के को ढूँढने जाता हूँ । मिल जाने पर इसे ले जाऊंगा ।
सिद्ध गुरू चला गया और लड़की के भेष में ब्राह्मण का लड़का राजकुमारी के पास रहने लगा । धीरे-धीरे दोनों में बड़ा प्रेम हो गया ।
एक दिन राजकुमारी ने कहा - मेरा दिल बड़ा दुखी रहता है । एक ब्राह्मण के लड़के ने मेरे प्राण पागल हाथी से बचाया थे । मेरा मन उसी में रमा है ।
इतना सुनकर लड़के ने मुंह से गुटिका निकाल ली और ब्राह्मण कुमार बन गया । राजकुमारी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुई । तब से वह रात को रोज गुटिका निकाल कर लड़का बन जाता , दिन में लड़की बन जाता । दोनों ने चुपचाप विवाह कर लिया।
कुछ दिन बाद राजा के साले की कन्या मृंगाकदत्ता का विवाह दीवान के बेटे के साथ होना तय हुआ । राजकुमारी अपने कन्या रूपधार ब्राह्मणकुमार के साथ वहां गयी । संयोग से दीवान का पुत्र उस बनावटी कन्या पर रीझ गया । विवाह होने पर वह मृंगाकदत्ता को घर तो ले गया , लेकिन उसका ह्रदय उस कन्या के लिए व्याकुल रहने लगा । उसकी यह दशा देखकर दीवान बहुत हैरान हुआ । उसने राजा को समाचार भेजा । राजा आया । उसके सामने सवाल था कि धरोहर के रूप में रखी कन्या को कैसे दे दे ? दूसरी ओर यह मुश्किल कि न दे तो दीवान का लड़का मर जाए ।
बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने दोनों का विवाह कर दिया । बनावटी कन्या ने यह शर्त रखी कि चूंकि वह दूसरे के लिए लाई गई थी , इसलिए उसका यह पति छः महीने तक यात्रा करेगा तब वह उससे बात करेगी। दीवान के लड़के ने यह शर्त मान ली ।
विवाह के बाद वह उसे मृंगाकदत्ता के पास छोड़कर तीर्थं-यात्रा पर चला गया । उसके जाने पर दोनों आनंद से रहने लगे । ब्राह्मणकुमार रात में अपने असली रूप में आ जाता और दिन में कन्या बना रहता ।
जब छः महीने बीतने को आए तो वह मृंगाकदत्ता को लेकर भाग गया ।
उधर सिद्धगुरू एक दिन अपने मित्र शशि को युवा पुत्र बनाकर राजा के पास ले गया और उस कन्या को मांगा ।
शाप के डर के मारे राजा ने कहा - वह कन्या तो जाने कहाँ चली गयी। आप मेरी कन्या से इसका विवाह कर दे।
वह राजी हो गया और राजकुमारी का विवाह शशि के साथ हो गया ।
घर आने पर ब्राह्मणकुमार ने कहा - यह राजकुमारी मेरी स्त्री है मैंने इससे गंधर्व-विवाह किया है ।
शशि ने कहा- यह मेरी स्त्री है , क्योंकि मैंने सबके सामने इससे विधि-वत विवाह किया है ।
वेताल ने पूछा - राजकुमारी दोनों में से किसकी स्त्री है ?
राजा ने कहा- मेरी राय में वह शशि की स्त्री हुई क्योंकि उसने राजा की मर्जी से सबके सामने उससे विवाह किया । ब्राह्मणकुमार ने तो चोरी से विवाह किया था । चोरी की चीज पर चोर का अधिकार नहीं होता ।
इतना सुनना था कि वेताल गायब हो गया और राजा को जाकर उसे फिर से लाना पड़ा । रास्ते में वेताल ने फिर एक कहानी सुनाई ।
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