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वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - दसवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी मदनपुर में वीरवर नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में एक वैश्य था , जिसका नाम हिरण्यदत्त था । उसके मदनसेना नामक एक कन्या थी ।  एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग में गई । वहां संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था । वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा । घर लौटकर वह उसके लिए सारी रात बैचैन रहा । अगले दिन फिर वह बाग में गया । वहां मदनसेना अकेली बैठी थी ।  उसने उसके पास जाकर कहा - तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण त्याग दूंगा ।  मदनसेना बोली - आज से पांचवे दिन मेरी शादी हैं । मैं तुम्हारी नहीं हो सकती ।  वह बोला - मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता ।  मदनसेना डर गयी । बोली - अच्छी बात है , मेरा विवाह हो जाने दो मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे मिलने आऊंगी ।  वचन देकर मदनसेना डर गयी । उसका विवाह हो गया और जब वह अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली - "आप मुझपर विश्वास करे और अभय दान दे तो एक बात कहूँ !" पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कही । सुनकर पति ने सोचा

वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - नौंवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  चम्मापुर नामक एक नगर था , जिसमें चम्पकेश्वर नामक राजा राज्य करता था । उसके सुलोचना नाम की एक रानी थी और त्रिभुवनसुंदरी नाम की एक लडकी थी। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया।  राजा और रानी को उसके विवाह की चिंता हुई । चारों ओर इसकी खबर फैल गई । बहुत से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेजी , परंतु राजकुमारी ने किसी को भी पसंद नहीं किया ।  राजा ने कहा - बेटी, कहो तो स्वयंवर का आयोजन करूँ ? लेकिन वह राजी नहीं हुई । आखिर राजा ने तय किया कि उसका विवाह उस आदमी से करेगा जो रूप , बल और विद्या में बढ़ा चढ़ा होगा ।  एक दिन राजा के पास चार देश से चार वर आए ।  एक ने कहा - मैं एक कपड़ा बनाकर पांच लाख में बेचता हूँ, एक लाख देवता को चढ़ाता हूँ , एक लाख अपने अंग लगाता हूँ , एक लाख स्त्री के लिए रखता हूँ और एक लाख अपने खाने-पीने का खर्च चलाता हूँ । इस विद्या को कोई ओर नही जानता ।  दूसरा बोला - मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ । तीसरा बोला - मैंने इतना शास्त्र पढ़ा है कि कोई ओर मेरा मुकाबला नहीं कर सकता है । 

वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - आठवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  अंग देश के एक गाँव में एक धनी ब्राह्मण रहता था । उसके तीन पुत्र थे । एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ कराना चाहा । उसके लिए एक कछुएं की जरूरत थी । उसने तीनों भाईयों को कछुआ लाने के लिए कहा । वे तीनों समुद्र तट पर पहुंचे । वहां उन्हें एक कछुआ मिल गया ।  बड़े भाई ने कहा - मैं भोजनचंग हूँ इसलिए कछुएं को नही छुऊंगा ।  मझला बोला - मैं नारीचंग हूं इसलिए नही छुऊंगा ।  सबसे छोटा बोला - मैं शैयाचंग हूँ सो मैं नहीं ले जाऊंगा ।  वे तीनों इस बहस में पड़ गए कि कौन उनमें से बढ़कर है । जब वे आपस में फैसला न कर सकें तो राजा के पास पहुंचे ।  राजा ने कहा - आप लोग रूके । मैं तीनों की अलग-अलग जांच करूंगा ।  इसके बाद राजा ने बढिया भोजन तैयार करवाया और तीनों खाने बैठे ।  सबसे बड़े ने कहा कि मैं इसे नहीं खाऊंगा इसमें मुर्दे की गंध आती हैं।  वह उठकर चला गया । राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन शमशान वाले खेत का बना है।  राजा ने उससे कहा - तुम सचमुच में भोजनचंग हो , तुम्हें भोजन की पहचान है ।  रात के समय राजा ने एक खूबसूरत वेश्या को मँझले भाई के पास भेजा । ज

वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - सातवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी  मिथलावती नाम की एक नगरी थी । उसमें गुणधिप नाम का राजा राज्य करता था । उसकी सेवा करने के लिए दूर देश से एक राजकुमार आया । वह बराबर कोशिश करता रहा , परंतु राजा से उसकी भेंट न हुई । जो कुछ वह अपने साथ लाया था सब समाप्त हो गया । एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया । राजकुमार भी साथ हो लिया । चलते-चलते राजा वन में पहुंचा । वहां उसके नौकर-चाकर बिछुड़ गए । राजा के साथ वह राजकुमार अकेला रह गया । उसने राजा को रोका ।  राजा ने उसकी ओर देखकर कहा - तू इतना कमजोर क्यों हो रहा है ?  उसने कहा - मेरे कर्म का दोष है । मैं जिस राजा के पास रहता हूँ वह हजारों को पालता है , पर उसकी निगाह मेरी ओर नही जाती । राजन् , छः बातें इंसान को हल्का करतीं हैं - खोटे नर की प्रीति , बिना कारण हंसी , स्त्री से विवाद , असज्जन स्वामी की सेवा , गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा । और हे राजन् , ये पांच चीजें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है - आयु , कर्म , धन , विद्या और यश । राजन् जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है , तब तक उसके बहुत से दास रहते हैं ।

वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - छठी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी धर्मपुर नामक नगरी में धर्मशील नाम का राजा राज्य करता था ।उसके अन्धक नामक एक दीवान था ।  एक दिन दीवान ने कहा - महाराज , देवी का एक मंदिर बनवाया जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा ।  राजा ने ऐसा ही किया । एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने के लिए कहा । राजा को कोई संतान न थी । उसने देवी से पुत्र मांगा । देवी के वरदान अनुसार राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई । सारे नगर में खुशियाँ मनाई गई ।  एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया । उसकी निगाह देवी के मंदिर पर पड़ी । उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई  दी , जो बड़ी सुंदर थी । उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने देवी के मंदिर जाकर प्रार्थना की , "हे देवी अगर यह लडक़ी मुझे मिल गई तो अपना शीश तुम्हें अर्पित कर दूंगा "।  इसके बाद वह हर घड़ी बैचैन रहने लगा । उसके मित्र ने उसके पिता को सब हाल कह सुनाया । अपने पुत्र की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उससे अनुरोध किया । इस तरह दोनों का विवाह हो गया ।  विवाह के कुछ दिन बाद लड़की

वेताल पच्चीसी - पांचवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पांचवी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी उज्जैन में महाबल नामक राजा राज्य करता था।  उसके हरिदास नामक एक दूत था , जिसकी महादेवी नाम की एक बड़ी सुंदर कन्या थी । जब वह विवाह योग्य हुई तो उसके पिता को उसकी चिंता हुई । इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहां पहुंचा । राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया ।  बोला - आप मुझे अपनी लड़की दे दे ।  हरिदास ने कहा - मैं अपनी लड़की उसे दूंगा जिसमें सभी गुण हो ।  ब्राह्मण ने कहा - मेरे पास एक ऐसा रथ है , जिसमें बैठकर जहां भी जाना चाहो घड़ी भर में पहुंच जाओगे ।  हरिदास बोला - ठीक है , उसे कल ले आना ।  अगले दिन दोनों रथ में बैठकर उज्जैन आ पहुंचे । दैवयोग से पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन के लिए किसी ओर लड़के को ले आया था और हरिदास की स्त्री ने भी एक लड़के को पसंद कर लिया था । इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गए थे। हरिदास सोचने लगा कि अब क्या करें ? लड़की एक है, और लड़के तीन ।  इसी बीच एक राक्षस आया और लड़की को उठाकर विंध्याचल पर्वत पर ले गया । तीनों लड़को में एक ज्ञानी था तो उसने तुरं

वेताल पच्चीसी - चौथी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - चौथी कहानी  भोगवती नामक एक नगरी थी । उसमें राजा रूपसेन राज करता था । उसके पास चिंतामणि नामक एक तोता था ।  एक दिन राजा ने उससे पूछा - हमारा विवाह किसके साथ होगा ?  तोते ने कहा - मगध देश की राजकुमारी चन्द्रावती के साथ।  राजा ने ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा तो उन्होंने भी वही कहा । उधर मगध देश की राजकन्या के पास एक मैना थी । उसका नाम था मदन मञ्जरी । एक दिन राजकन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ ।  इसके बाद दोनों का विवाह हो गया । रानी के साथ उसकी मैना भी आ गई । राजा-रानी ने तोता-मैना का विवाह कराकर एक पिंजड़े में रख दिया । एक दिन कि बात है , तोता मैना में बहस हो गई ।  मैना ने कहा - आदमी बड़ा पापी , दगाबाज और अधर्मी होता है ।  तोते ने कहा - स्त्री झूठी , लालची और हत्यारी होती है ।  दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने पूछा - क्यों तुम दोनों क्यों लड़ते हो ? मैना ने कहा - महाराज , मर्द बड़े बुरे होते हैं । इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनाई ।  इलापुर नगर में महाधन नामक एक सेठ रहता था । विवाह के बहुत दिनों बाद उसके घर

वेताल पच्चीसी - तीसरी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल की कहानी वेताल पच्चीसी - तीसरी कहानी  वर्धमान नगर में रूपसेन नामक राजा राज्य करता था । एक दिन उसके दरबार में वीरवर नामक एक आदमी नौकरी के लिए आया । राजा ने उससे पूछा कि उसे खर्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया , हजार तोले सोना।  सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ ।  राजा ने पूछा - तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं ? वीरवर - मेरी स्त्री , बेटी और बेटा ।  राजा को ओर भी अचम्भा हुआ । आखिर चार जने इतने धन का क्या करेंगे ? फिर भी उसकी बात मान ली और उसे नौकरी पर रख लिया ।  उस दिन से वीरवर रोज हजार तोले सोना भण्डारी से लेकर जाता।  उसमें से आधा ब्राह्मणों में बाँट देता , बाकी के दो हिस्से करके एक मेहमानों , संन्यासीयो को दे देता और दूसरे से भोजन बनवाकर पहले गरीबों को खिलाता , उसके बाद जो बचता उससे अपने बच्चों और स्त्री को खिलाता और आप खाता । काम यह था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चौकीदारी करता । राजा को जब कभी जरूरत होती , वह तुरंत हाज़िर होता ।  एक आधी रात के समय राजा को मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज आई । उसने वीरवर को बुलाया तो वह आया । राजा ने कहा - जाओं  , पता लगा

वेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  विक्रम वेताल की कहानी वेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी  यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था । उस नगर में गणाधिपति नामक राजा राज्य करता था । उसी नगर में केशव नामक एक ब्राह्मण भी रहता था । ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था । उसकी एक लडक़ी थी , जिसका नाम मालती थी , वह बड़ी रूपवती और गुणवती थी । जब वह विवाह के योग्य हुुई तो उसके माता-पिता और भाई को उसके विवाह की चिंता हुई । संयोग से एक दिन ब्राह्मण जब अपने किसी यजमान की बारात में गया और भाई पढने गया था तभी उसके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया।  लडक़ी की माता ने उसके रूप और गुणों को देखकर कहा कि मैं अपनी पुत्री का विवाह तुमसे ही करूंगी । होनहार की बात कि दूसरे ओर लड़की के पिता को भी एक अच्छा ब्राह्मण लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी वही वचन दे दिया । तीसरे ब्राह्मण का लड़का यानी कि लड़की का भाई जहां पढ़ने गया था उसने वहां एक लड़के से यही वचन दे दिया ।  जब कुछ समय बाद माता-पिता और भाई एक जगह इकट्ठे हुए तो देखते हैं कि एक तीसरा लड़का भी है । दो तो पहले से ही है । अब क्या हो ? ब्राह्मण , ब्राह्मणी और उसका लड़का तीनों सोच में पड़

वेताल पच्चीसी - पहली कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  वेताल पच्चीसी - पहली कहानी विक्रम वेताल की कहानी काशी में प्रतापमुकुट नामक एक राजा राज्य करता था । उसका वज्रमुकुट नामक एक पुत्र था।  एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को लेकर जंगल में शिकार खेलने के लिए गया । घूमते-घूमते उन्हें एक तालाब मिला । उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे । किनारों पर घने पेड़ थे , जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे । दोनों मित्र वहां रूक गए और तालाब के पानी में हाथ मुंह धोकर ऊपर महादेव के मंदिर गए ।  घोड़ो को उन्होंने मंदिर के बाहर बांध दिया। जब वे मंदिर में दर्शन करके आए तो देखते हैं कि तालाब में एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई थी । दीवान का लड़का तो वही एक पेड़ के नीचे बैठा रहा लेकिन राजकुमार से न रहा गया । वह आगे बढ़ । राजकुमारी ने उसकी ओर देखा तो वह मोहित हो गया । राजकुमारी भी उसकी तरफ देखती रही । फिर उसने अपने जुड़े में से एक कमल का फूल निकाला , कान से लगाया , दांत से कुतरा , पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगाया , अपनी सहेलियों के साथ चली गई।   उसके जाने से राजकुमार उदास हो अपने मित्र के पास गया और उसे सारी बातें बता दी और कहा मैं राजक

सर्वश्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ | Best hindi stories

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  हिन्दी कहानियाँ | Hindi stories   हिन्दी की कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ | some famous stories of hindi Hindi story #1.  सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ #2.  हितोपदेश की कहानियाँ | Hitopdesh stories in hindi #3.   वेताल पच्चीसी | Vikram Betal stories in hindi #4.  पंचतंत्र की कहानियाँ | panchatantra stories in hindi #5.  परियों की कहानी | Fairy Tales #6.  अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal stories in hindi Life changing stories in hindi | जीवन को बदल देने वाली कहानियाँ  महात्मा बुद्ध और उनके जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक कहानियों का संग्रह | Jataka stories in hindi महापुरुषों की जीवन गाथा | Inspiring life history of Great people महान कवियों की जीवनी | biography of great hindi Poet जैन धर्म के बारे में | Jain dharma in hindi हिन्दू पौराणिक कथा संग्रह | Mythological stories in hindi  हिन्दू पौराणिक मान्यता | (13 कहानियाँ)Hindu Mythology in hindi महाभारत की कहानियों का संग्रह (28 कहानियाँ)| Mahabharata stories in hindi हिन्दू पौराणिक कहानियाँ | Hindu Mythological stories in hindi हिन्दू त्योहार और

वेताल पच्चीसी - प्रारंभ की कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

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  Vikram Betal in hindi वेताल पच्चीसी - प्रारंभ की कहानी | विक्रम - वेताल की कहानियाँ हिन्दी में  वेताल पच्चीसी परिचय | Betal Pachisi Introduction वेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रंथ है । इसके रचयिता बेतालभट्ट राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे । ये कथाएं राजा विक्रमादित्य के न्याय-शक्ति का बोध कराती है । वेताल हर बार राजा विक्रमादित्य से ऐसा प्रश्न करता कि उसे जवाब देना पड़ता था । उसकी यह शर्त थी कि जब राजा बोलेगा वह फिर से पेड़ पर जा लटकेगा । लेकिन यह जानते हुए भी राजा विक्रमादित्य से चुप न रहा जाता ।  वेताल पच्चीसी आरंभ | Betal Pachisi stories बहुत पुरानी बात है , धारा नगरी में गंधर्वसेन नामक राजा राज्य करता था । उसके चार रानियां थी । उनके छः पुत्र थे ।  जब राजा गंधर्वसेन की मृत्यु हो गई तो उसका सबसे बड़ा पुत्र शंख गद्दी पर बैठा । उसने कुछ दिन राज किया , लेकिन उसके छोटे भाई विक्रमादित्य ने उसकी हत्या कर दी और खुद गद्दी पर बैठा । उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता ही चला गया । एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए । जिन देशों के नाम उसने सुन रखे हैं , उन्हें देखन

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | prithviraj chahuhan's biography in hindi

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पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय | Prithviraj Chahuhan's biography in hindi पृथ्वीराज तृतीय जिन्हें पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाना जाता है , चौहान वंश के राजा तथा भारतवर्ष के सबसे प्रसिद्ध राजाओं में एक थे । वे अंतिम हिन्दू सम्राट थे जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर राज किया । उनकी राजधानी अजमेर थी । पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूरदेवी के घर हुआ । सोमेश्वर चौहान की मृत्यु 1177 ईसवीं में हुई थी उस समय पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष के थे । पृथ्वी राज जो उस समय नाबालिग थे अपनी माता के साथ गद्दी पर बैठे।  उनका शासनकाल 1178 ईसवीं से 1192 ईसवीं तक का था। पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा भी कहा जाता है।  वेे बचपन से ही एक कुुुशल योद्धा थे । उन्होंने अपने बाल्यकाल में ही शब्दभेदी बाण का अभ्यास किया था। वेे अश्व और हाथी नियंत्रण विद्या में भी माहिर थे ।   Prithviraj chahuhan's biography पृथ्वीराज चौहान का जन्म ( Birth of prithviraj chahuhan) राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूर देवी को बारह वर्ष के लंबे इंतजार के बाद बेटे पृथ्वीराज को गोद में लेने का सौभाग्य मिला

संपूर्ण सिंहासन बत्तीसी / Sinhasan Battisi All stories

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सिंहासन बत्तीसी की सभी बत्तीस कहानियाँ  Sinhasan Battisi All stories सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ बहुत ही लोकप्रिय है । महान सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से जुड़ी यह कहानीयां बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है । यहां सिंहासन बत्तीसी की कहानियों को एक ही जगह पर एकत्रित करने का प्रयास किया है ।  1.  विक्रमादित्य के जन्म और पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी   2.  दूसरी पुतली चित्रलेखा की कहानी 3.  तीसरी पुतली चन्द्रकला की कहानी 4 .  चौथी पुतली कामकंदला की कहानी 5 .  पांचवी पुतली लीलावती की कहानी 6 .  छठी पुतली रविभामा की कहानी 7 .  सातवीं पुतली कोमुदी की कहानी 8 .  आठवीं पुतली पुष्पावती की कहानी   9 .  नौंवी पुतली मधुमालती की कहानी 10.  दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी 11.  ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना की कहानी 12 .  बारहवीं पुतली पद्मावती की कहानी 13 .  तेरहवीं पुतली कीर्तिमति की कहानी 14.  चौदहवीं पुतली सुनयना की कहानी 15.  पन्द्रहवीं पुतली सुन्दरवती की कहानी 16.  सोलहवीं पुतली सत्यवती की कहानी 17.  सत्रहवीं पुतली विद्यावती की कहानी 18.  अठारहवीं पुतली तारावती की कहानी 19 .  उन्नीसवीं पुतली रूपरेखा की

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 32 / Vikram aditya stories in hindi

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ हिन्दी में बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने कहना आरंभ किया -  राजा विक्रमादित्य का आखिरी समय आया तो वह विमान में बैठकर इन्द्रलोक पहुंचा । उसके जाने से तीनों लोकों में बड़ा शोक मनाया गया । राजा के साथ उसके दो वीर भी चले गए । धर्म की ध्वजा उखड़ गई। ब्राह्मण भिखारी सभी रोने लगे । रानियां राजा के साथ सती हो गई ।  दीवान ने राजकुमार जैतपाल को गद्दी पर बैठाया ।  एक दिन की बात है , नया राजा इस गद्दी पर बैठा तो मूर्छित हो गया । उसी हालत में उसने देखा कि राजा विक्रमादित्य कह रहे हैं कि तू इस सिंहासन पर मत बैठ ।  जैतपाल की आँखे खुल गई और वह सिंहासन से नीचे उतरा और दीवान को सारी बातें बताई ।  दीवान बोला - तुम रात को ध्यान लगाकर राजा विक्रमादित्य से पूछना कि मैं क्या करू ? वे जैसे कहे वही करना ।  जैतपाल ने ऐसा ही किया ।  राजा विक्रमादित्य ने उससे कहा - तुम उज्जयिनी नगरी और धारा नगरी छोड़कर अंबावती नगरी में चलें जाओं और वहीं राज करना । इस सिंहासन को वही गड़वा दो । सवेरा होते ही राजा जैतपाल ने सिंहासन वही गड़वा दिया और अंबावती नगरी चला गया । उज्जयिनी और धारा नगरी उजड़ गयी ।

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ हिन्दी में 31 / Vikram aditya stories in hindi

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ हिन्दी में इकत्तीसवी पुतली कौशल्या ने कहना आरंभ किया -  जब राजा विक्रमादित्य को मालूम हो गया कि उनका अंत नजदीक आ गया है तो उन्होंने गंगाजी के सामने एक महल बनवाया और उसमें रहने लगा ।  उसने चारों ओर खबर फैला दी कि जिसको जितना धन चाहिए मुझसे आकर ले ले । भिखारी आए ब्राह्मण आए।  देवता भी रूप बदलकर आए।  उन्होंने राजा से प्रसन्न होकर कहा - " हे राजन् ! तीनों लोकों में तुम्हारी निशानी रहेगी । जैसे सतयुग में राजा हरिश्चंद्र , त्रेता में दानी बलि , और द्वापर में युधिष्ठिर हुए , वैसे ही कलियुग में तुम हो।  चारों युगों में तुम सा राजा हुआ है न होगा । " देवता चले गए । इतने में राजा ने देखा कि सामने से एक हिरण चला आ रहा है  । राजा ने उसे मारने के लिए तीर कमान उठाई तो वह बोला -  मुझे मारों मत ! मैं पिछले जन्म में ब्राह्मण था । मुझे यती ने श्राप देकर हिरण बना दिया और कहा कि राजा विक्रमादित्य के दर्शन करके तू फिर से इंसान मन जाएगा । इतना कहते-कहते वह हिरण गायब हो गया और एक ब्राह्मण खड़ा हो गया।  राजा ने बहुत सारा धन देकर उसे विदा किया ।  पुतली बोली - हे राजन् अगर

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ हिन्दी में 30 / Raja Vikramaditya Ki Kahaniya

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ हिन्दी में  तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने कहना आरंभ किया -  एक बार राजा विक्रमादित्य रात के समय घूमने निकले । आगे चलकर उन्होंने चार चोरों को साथ में देखा । वे आपस में बातें कर रहे थे ।  उन्होंने राजा से पूछा - तुम कौन हो ? राजा बोला - जो तुम हो वही मैं भी हूँ ।   तब चोरों ने मिलकर सलाह की कि राजा के यहाँ चोरी की जाए ।  एक ने कहा - मैं ऐसा मुहूर्त देखने जानता हूँ जो खाली हाथ न जाए ।  दूसरा कहता था - मैं जानवरों की बोली समझता हूँ ।  तीसरा बोला - मैं जहाँ भी चोरी करने जाऊं कोई मुझे नहीं देख सकता , पर मैं सबको देख सकता हूँ ।  चौथे ने कहा कि मेरे पास ऐसी चीज है कि कोई मुझे कितना भी मारे मै न मरूं ।  फिर राजा ने कहा - मैं यह बता सकता हूँ कि धन कहां गड़ा है । पांचो उसी वक्त राजा के महल पहुंचे ।  राजा ने जहां धन गड़ा था वह जगह बता दिया ।  खोदा तो सचमुच में बहुत सा माल मिला । तभी एक गीदड़ ने कहा , जानवरों की बोली समझने वाला चोर बोला - 'धन लेने में कुशल नहीं है ' । पर वे न माने । फिर उन्होंने एक धोबी के यहाँ सेंध लगाई ।   राजा को अब क्या करना था , वह उनके साथ नही

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ हिन्दी में 29 / Stories of Raja Vikramaditya

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ  उन्नतीसवी पुतली मानवती ने कहना आरंभ किया -  एक बार राजा विक्रमादित्य ने सपना देखा कि एक सोने का महल है , जिसमें कई तरह के रत्न जड़े है । कई तरह के पकवान और सुगंधियां है , फुलवारी खिली हुई है, दीवारों पर चित्र बने है , अंदर नाच और गाना हो रहा है और एक तपस्वी बैठा हुआ है । अगले दिन राजा ने अपने वीरों को बुलाया और अपना सपना बताकर उन्हें कहा कि मुझे उस जगह ले चलो । वीरों ने राजा को वही पहुंचा दिया ।  राजा को देखते ही सारा नाच गाना बंद हो गया । तपस्वी को बड़ा गुस्सा आया ।  विक्रमादित्य ने कहा - महाराज आपके क्रोध की आग को कौन सह सकता है । मुझे क्षमा करे ।  तपस्वी खुश हो गया और बोला - जो जी में आए सो मांगो ।  राजा ने कहा - योगीराज मेरे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है । यह महल मुझे दे दीजिये । चूंकि योगी उसे वचन दे चुका था । उसने महल राजा को दे दिया परंतु वह स्वयं बहुत दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगा । अपना दुख उसने एक योगी को बताया ।  उसने बताया - राजा विक्रमादित्य बड़ा दानी है । तुम उससे वह महल मांग लो । वह दे देगा।  तपस्वी ने ऐसा ही किया और विक्रमादित्य ने वह महल मा

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 28 / Stories of Raja Vikramaditya

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ अट्ठाइसवीं पुतली वैदेही ने कहना आरंभ किया - एक बार किसी ने राजा विक्रमादित्य से कहा कि पाताल में बलि नामक एक बहुत बड़ा राजा रहता है।  इतना सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और पाताल पहुंचा । राजा बलि को खबर भिजवाई तो उसने मिलने से मना कर दिया । इस पर विक्रमादित्य ने दुखी होकर अपना सर काट डाला । बलि को मालूम हुआ तो उसने अमृत छिड़कवाकर राजा को जिंदा कराया और कहलाया कि शिवरात्रि को आना।   राजा ने कहा - नहीं मैं अभी दर्शन करूंगा ।  बलि के आदमियों ने मना किया तो राजा ने फिर से अपना सर काट लिया।  बलि ने जिंदा कराया और उसके प्रेम को देखकर प्रसन्न हो, उससे मिला।  बोले - हे राजन् ! यह लाल मूँगा लो और अपने देश जाओं । इस मूँगे से जो मांगोगे वह मिलेगा ।  मूँगा लेकर राजा विक्रमादित्य अपने नगर को लौट गया । रास्ते में उसे एक स्त्री मिली । उसका आदमी मर गया था और वह बिलख-बिलखकर रो रही थी । राजा ने उसे चुप कराया और मूँगे का गुण बताकर उसे दे दी ।  पुतली बोली - हे राजन् । जो राजा इतना दानी और प्रजा की भलाई करने वाला हो वह सिंहासन पर बैठे ।  इस तरह फिर से मुहूर्त निकल

राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 27 / Stories of Raja Vikramaditya

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 सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ सत्ताईसवीं पुतली की कहानी सत्ताईसवीं पुतली मलयवती नेे अपनी कहानी सुनाई - एक बार राजा विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इन्द्र के समान कोई राजा नहीं है । यह सुनकर राजा विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इन्द्रपुरी पहुंचा । इन्द्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा ।  राजा ने कहा - आपके दर्शन के लिए आया हूँ।   इन्द्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट और विमान दिया और कहा - जो भी तुम्हारे सिंहासन को बुरी नजर से देखेगा , वह अंधा हो जाएगा ।  राजा वहां से अपने नगर लौट आया ........ पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया । खड़ा होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वही चिपक गए। उसने पैर हटाने चाहे पर न हटे । इस पर सारी पुतलियाँ खिलखिला कर हंसने लगी । राजा भोज बहुत पछताया ।  उसने पुतलियों से पूछा - मुझे बताओ अब मैं क्या करू ? उन्होंने कहा - विक्रमादित्य का नाम लो तब भला होगा । राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया उसे दिखने लगा और पैर भी उखड़ गया ।  पुतली बोली - हे राजन् । मैं इसलिए तुमसे कहती हूँ इस सिंह