राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 32 / Vikram aditya stories in hindi
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ हिन्दी में
बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने कहना आरंभ किया -
राजा विक्रमादित्य का आखिरी समय आया तो वह विमान में बैठकर इन्द्रलोक पहुंचा । उसके जाने से तीनों लोकों में बड़ा शोक मनाया गया । राजा के साथ उसके दो वीर भी चले गए । धर्म की ध्वजा उखड़ गई। ब्राह्मण भिखारी सभी रोने लगे । रानियां राजा के साथ सती हो गई । दीवान ने राजकुमार जैतपाल को गद्दी पर बैठाया ।
एक दिन की बात है , नया राजा इस गद्दी पर बैठा तो मूर्छित हो गया । उसी हालत में उसने देखा कि राजा विक्रमादित्य कह रहे हैं कि तू इस सिंहासन पर मत बैठ । जैतपाल की आँखे खुल गई और वह सिंहासन से नीचे उतरा और दीवान को सारी बातें बताई ।
दीवान बोला - तुम रात को ध्यान लगाकर राजा विक्रमादित्य से पूछना कि मैं क्या करू ? वे जैसे कहे वही करना ।
जैतपाल ने ऐसा ही किया ।
राजा विक्रमादित्य ने उससे कहा - तुम उज्जयिनी नगरी और धारा नगरी छोड़कर अंबावती नगरी में चलें जाओं और वहीं राज करना । इस सिंहासन को वही गड़वा दो ।
सवेरा होते ही राजा जैतपाल ने सिंहासन वही गड़वा दिया और अंबावती नगरी चला गया । उज्जयिनी और धारा नगरी उजड़ गयी ।
पुतली की यह कहानी सुनकर राजा भोज बड़ा पछताया और दीवान को आज्ञा दी कि इस सिंहासन को जहां से निकलवाया था वही गड़वा दो । फिर अपना राजपाट वह दीवान को सौंपकर तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा और वही तपस्या करने लगा ।
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