राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ 28 / Stories of Raja Vikramaditya
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
अट्ठाइसवीं पुतली वैदेही ने कहना आरंभ किया -
एक बार किसी ने राजा विक्रमादित्य से कहा कि पाताल में बलि नामक एक बहुत बड़ा राजा रहता है। इतना सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और पाताल पहुंचा । राजा बलि को खबर भिजवाई तो उसने मिलने से मना कर दिया । इस पर विक्रमादित्य ने दुखी होकर अपना सर काट डाला । बलि को मालूम हुआ तो उसने अमृत छिड़कवाकर राजा को जिंदा कराया और कहलाया कि शिवरात्रि को आना।
राजा ने कहा - नहीं मैं अभी दर्शन करूंगा ।
बलि के आदमियों ने मना किया तो राजा ने फिर से अपना सर काट लिया। बलि ने जिंदा कराया और उसके प्रेम को देखकर प्रसन्न हो, उससे मिला। बोले - हे राजन् ! यह लाल मूँगा लो और अपने देश जाओं । इस मूँगे से जो मांगोगे वह मिलेगा ।
मूँगा लेकर राजा विक्रमादित्य अपने नगर को लौट गया । रास्ते में उसे एक स्त्री मिली । उसका आदमी मर गया था और वह बिलख-बिलखकर रो रही थी । राजा ने उसे चुप कराया और मूँगे का गुण बताकर उसे दे दी ।
पुतली बोली - हे राजन् । जो राजा इतना दानी और प्रजा की भलाई करने वाला हो वह सिंहासन पर बैठे ।
इस तरह फिर से मुहूर्त निकल गया । अगले दिन उन्नतीसवी पुतली ने अपनी कहानी सुनाई ।
उन्नतीसवी पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
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