राजा विक्रमादित्य की कहानियाँ हिन्दी में 30 / Raja Vikramaditya Ki Kahaniya
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ हिन्दी में
तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने कहना आरंभ किया -
एक बार राजा विक्रमादित्य रात के समय घूमने निकले । आगे चलकर उन्होंने चार चोरों को साथ में देखा । वे आपस में बातें कर रहे थे ।
उन्होंने राजा से पूछा - तुम कौन हो ?
राजा बोला - जो तुम हो वही मैं भी हूँ ।
तब चोरों ने मिलकर सलाह की कि राजा के यहाँ चोरी की जाए ।
एक ने कहा - मैं ऐसा मुहूर्त देखने जानता हूँ जो खाली हाथ न जाए ।
दूसरा कहता था - मैं जानवरों की बोली समझता हूँ ।
तीसरा बोला - मैं जहाँ भी चोरी करने जाऊं कोई मुझे नहीं देख सकता , पर मैं सबको देख सकता हूँ ।
चौथे ने कहा कि मेरे पास ऐसी चीज है कि कोई मुझे कितना भी मारे मै न मरूं ।
फिर राजा ने कहा - मैं यह बता सकता हूँ कि धन कहां गड़ा है ।
पांचो उसी वक्त राजा के महल पहुंचे । राजा ने जहां धन गड़ा था वह जगह बता दिया । खोदा तो सचमुच में बहुत सा माल मिला । तभी एक गीदड़ ने कहा , जानवरों की बोली समझने वाला चोर बोला - 'धन लेने में कुशल नहीं है ' । पर वे न माने । फिर उन्होंने एक धोबी के यहाँ सेंध लगाई । राजा को अब क्या करना था , वह उनके साथ नहीं गया ।
अगले दिन पूरे नगर में शोर मच गया कि राजा के महल में चोरी हो गई है । कोतवाल ने चोरों की तलाश करके राजा के सामने हाजिर किया। चोर देखते ही पहचान गए कि रात को उनके साथ पांचवा चोर ओर कोई नही राजा ही था । उन्होंने जब यह बात राजा से कहीं तो वह हंसने लगा ।
उसने कहा - तुम लोग डरों मत ! हम तुम्हारा कुछ न होने देंगे पर तुम कसम खाओ आगे से ऐसा नहीं करोगे। जितना धन तुम्हें चाहिए मुझसे ले लो ।
राजा ने मुंहमांगा धन देकर विदा किया ।
पुतली बोली - अगर हैं तुममें इतनी उदारता तो सिंहासन पर बैठों ।
अगले दिन राजा भोज जब सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़ा तो इकत्तीसवी पुतली ने कहा - तुम विक्रमादित्य की बराबरी नहीं कर सकते हो । लो सुनों ....
इकत्तीसवी पुतली की कहानी अगले पोस्ट में पढें -
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