वेताल पच्चीसी - अट्ठारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी

 

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वेताल पच्चीसी - अट्ठारहवीं कहानी | विक्रम वेताल की कहानी


उज्जैन नगरी में महासेन नामक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था , जिसके गुणाकर नाम का एक बेटा था । गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुएं में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया । वह दूसरे नगर में पहुंचा । वहां उसे एक योगी मिला । उसे हैरान देखकर कारण पूछा तो उसने सब बता दिया । 

योगी ने कहा - लो , पहले कुछ खा लो ।

गुणाकर ने कहा - मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ । आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ । 

इतना सुनकर योगी ने सिद्धि को याद किया । वह आयी ।  योगी ने उससे आवभगत करने को कहा । सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकर उसमें रात-भर अच्छी तरह से रहा । सबेरे उठने पर उसने देखा कि महल आदि कुछ नहीं है । 

उसने योगी से कहा - महाराज , उस स्त्री के बिना अब मैं नही रह सकता  हूँ । 

योगी ने कहा - वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने से मिलेगी और वह विद्या जल के अंदर खड़े होकर जप करने से मिलेगी । लेकिन जब वह तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या प्राप्त करके क्या करोगे ?

गुणाकर ने कहा - नही मैं स्वयं वैसा करूंगा । 

योगी ने कहा - कहीं ऐसा न हो कि तुम विद्या भी प्राप्त न कर पाओ और मेरी सिद्धि भी नष्ट हो जाए ।

पर गुणाकर न माना । योगी ने उसे नदी के किनारे ले जाकर मंत्र बता दिया और कहा कि जब तुम जप करते हुए माया से मोहित होगे तो मैं तुम पर अपनी विद्या का प्रयोग करूंगा । उस समय तुम अग्नि में प्रवेश करना । 

गुणाकर जप करने लगा । जब वह माया से एकदम मोहित हो गया तो देखता क्या है कि वह किसी ब्राह्मण के बेटे के रूप में जन्म लिया । उसका ब्याह हो गया । उसके बाल-बच्चे हो गए । वह अपने जन्म की बात भूल गया ।  तभी योगी ने अपनी विद्या का प्रयोग किया । गुणाकर मायारहित होकर अग्नि में प्रवेश करने के लिए तैयार हो गया । उसी समय उसने देखा कि उसे मरता देख उसके माता-पिता और परिजन रो रहे हैं और उसे आग में जाने से रोक रहे हैं । गुणाकर ने सोचा मेरे मरने के बाद कहीं ये सब भी न मर जाएं और पता नहीं योगी की बात सच हो न हो । इस तरह सोचता हुआ वह आग में घुसा तो आग ठंडी हो गयी और माया भी शांत हो गई ।  गुणाकर चकित होकर योगी के पास आया और उसे सारा हाल बता दिया । 

योगी ने कहा - लगता है कि तुम्हारे करने में कोई कसर रह गई । 

योगी ने स्वयं सिद्धि याद की लेकिन वह भी नही आई । इस तरह योगी और गुणाकर दोनों की विद्या नष्ट हो गई । 


इतनी कथा सुनाकर वेताल ने कहा - बताओं , राजन् कि दोनों की विद्या क्यों नष्ट हो गई ?

राजा ने कहा - इसका जवाब साफ हैं कि निर्मल और शुद्ध संकल्प करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है । गुणाकर के दिल में शंका हुई कि पता नही योगी की बात सच हो न हो । योगी की विद्या इसलिए नष्ट हुई कि उसने अपात्र को विद्या दी । 

राजा का जवाब सुनकर वेताल फिर से पेड़ पर जा लटका । राजा फिर से उसे लेकर चला तो वेताल ने एक नई कहानी सुनाई ।

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