द्रौपदी का चीरहरण
द्वापर युग में जब एक समय पांच पांडव भाइयों में से युधिष्ठिर इन्द्रप्रस्थ नगर पर राज्य कर रहे थे । दुर्योधन उस समय हस्तिनापुर का राजकुमार था और अपने पिता के बाद राजा बनने वाला था । इतना सब कुछ मिलने के बाद भी उसकी नजर पांडवो पर थी । वह उनका सब कुछ हडप लेना चाहता था । उसके मन में पांडवो के लिए अत्यधिक घृणा थी । एक बार दुर्योधन के मामा शकुनि ने दुर्योधन को यह सलाह दी कि वह पांडवो को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करे । इसके बाद सब कुछ उसपर छोड़ दें वह पांडवो को ऐसा फंसाऐगा की वह सब कुछ दुर्योधन के हाथों हार बैठेंगे । मामा शकुनि के सलाह के पश्चात दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया । जुआ युधिष्ठिर की कमजोरी थी और इसलिए वे मना नहीं कर सके । जुआ खेलने के लिए एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया । जिसमें स्वयं राजा धृतराष्ट्र , भीष्म पितामह, महात्मा विदुर , द्रोणाचार्य जैसे महान लोग उपस्थित थे । खेल प्रारंभ हुआ । मामा शकुनि ने अपने जदुई पासो का प्रयोग किया और एक एक करके युधिष्ठिर से सब कुछ छीन लिया । यहां तक