सेर को सवा सेर
शहर गंगापुर में सबसे बड़ी दुकान दमड़ी साह की थी । उसकी
दुकान में जरूरत का सारा सामान मिल जाता था । लेकिन
दमड़ी साह था बड़ा नफाखोर आदमी । सस्ती और बेकार
चीज़ें लाकर मनमाने ढंग से बेचते थे । सब जानते हुए भी लोग
कुछ नहीं कह पाते थे क्योंकि आस-पास कोई ओर अच्छी
दुकान भी नहीं थी ।
उसी शहर में सोहन नाम का एक बुद्धिमान
आदमी रहता था । साह की आदतों से परेशान होकर उसने
उसे सबक सिखाने की सोची । अगले ही दिन सोहन दमड़ी
साह की दुकान पर गया और कहा - राम राम साह जी ।
"हाँ हाँ ठीक है ! कुछ चाहिए तो बोलों। उसने भौंहे टेढ़ी
करके कहा । सोहन बोला - चाहिए तो कुछ नहीं बस मैं
आपकों अपने घर दावत का निमंत्रण देने आया था ।
दावत का नाम सुनते ही साह को आश्चर्य हुआ पर अंदर ही
अंदर खुश होकर बोला - किस बात की दावत?
सोहन - आपको दावत में बुलाने के लिए भी कोई कारण की
जरूरत है ।
दमड़ी साह ने खुश होकर दावत का निमंत्रण स्वीकार कर
लिया । यथासमय शाम को दुकान बंद कर वह सोहन के घर
पहुंचा । कुछ देर दोनों में औपचारिक बातचीत हुई इसके बाद
साह के सामने खाना परोसा गया । साह को तो पकवानों की
महक पहले से ही आ रही थी और उसे देखते ही उसके मुंह
मे पानी आ गया । हडबडी में उसने एक कचौरी उठाई और
मुंह में डाल ली । बस फिर क्या था मुंह चलाते ही दाँतो में
रेत खिसखिसा उठी । साह हक्का-बक्का हो गया न निगलते
बने न उगलते ।
साह के चेहरे का रंग देख सोहन अंदर ही अंदर खुश होकर
बोला - क्या बात है साह जी आपको कचौरी अच्छी नहीं लगी ?
नहीं बहुत अच्छी है , दमड़ी साह हड़बड़ाकर बोला ।
होंगी क्यों नहीं आपके दुकान का आटा है , सोहन बोला ।
यह सुनकर दमड़ी साह पर घड़ों पानी पड़ गया । सोचा
कचौरी न सही पुलाव खाकर ही पेट भरा जाए । जैसे ही
पुलाव खाया कंकडों के मारे जान निकल गई ।
अब तो दमड़ी साह की हालत देखने लायक थी । उसकी
हालत का मजा लेते हुए सोहन बोला - " क्या बात है , साह
जी । लगता है आपको पुलाव भी पसंद नहीं आया । पर मैंने
तो बड़ी उम्मीद के साथ आपकी ही दुकान से बासमती चावल
लाया था । अच्छा आप खीर तो खाकर देखिए बहुत अच्छी
बनी है ।"
" क्या खीर के लिए शक्कर भी मेरे दुकान ....? दमड़ी साह
एकदम घबरा गए । सोहन मुस्कुरा कर बोला - हाँ हाँ आप ही
की दुकान से मंगवाई थी इतना सुनते ही बस क्या था दमड़ी
साह उलटे पैर भागे वहां से ।
आज सोहन ने उसे अच्छा मजा चखाया ।
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