केदारनाथ यात्रा और मंदिर

 भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ चारधामों में से एक है और यह 3586 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर गढ़वाल हिमालय में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। मुख्य सड़क ग़ौरी कुंड तक जाती है उसके बाद केदारनाथ मंदिर जाने के लिए 16 किलोमीटर तक पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है । आजकल हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध हैं। केदार भगवान भोलेनाथ का दूसरा नाम है, जो रक्षक और संहारक हैं। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ और मध्यमहेश्वर से मूर्तियों को उखीमठ लाया जाता है और वहां छह महीने तक पूजा की जाती है। उत्कृष्ट वास्तुकला वाला केदारनाथ मंदिर 1000 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है।

Kedarnath mandir

केदारनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों द्वारा अपने पापों के प्रायश्चित करने के लिए किया गया था। भगवान भोलेनाथ ने बैल का रूप धारण कर पांडवों से बचने की कोशिश की , लेकिन अंत में पांडवों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद भोलेनाथ वहीं धरती में समा गए सिर्फ उनका‌ कूबड़ ही धरती के ऊपर रह गया। उसी स्थान पर फिर पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। 


एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय पर्वत पर ऋषि नर और नारायण तपस्या करते थे थे । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उनको दर्शन दिया तथा उनकी प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग में सदा वास करने का वरदान दिया। 


समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों द्वारा निर्मित मंदिर समय के साथ लुप्त हो गया परंतु आदि शंकराचार्य ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया , जो चार सौ वर्षों तक बर्फ से ढका रहा था परन्तु जब बर्फ पिघला‌ तो यह मंदिर पूर्णत सुरक्षित था । दसवीं सदी के मध्य में राजा भोज ने भी मंदिर के जीर्णोद्धार में अपनी भूमिका निभाई। 

2013 में आई आपदा में मंदिर को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा, जहां पूरे तीर्थ स्थल में भयंकर आफत आई हुई थी वहीं मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ी चट्टान आकर रुक गई जिससे बाढ़ का पानी दो भागों में बंट गया और मंदिर पूर्णत सुरक्षित रहा । 


यह शिला आज भी मंदिर के पीछे आदि शंकराचार्य की समाधि के पास मौजूद है। इस शिला को भीम शिला के नाम से जाना जाता है। 



जय बाबा केदार ।

हर हर महादेव।।





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