सोई हुई राजकुमारी की कहानी | Sleeping Beauty fairy tale Story

 

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Sleeping Beauty fairy tale story in hindi


सोई हुई राजकुमारी की कहानी | Sleeping Beauty fairy tale in hindi 



एक खुशहाल राज्य में एक राजा और एक रानी रहा करते थे । सारी खुशियाँ होने के बावजूद वे दुःखी थे , क्योंकि उन्हें कोई संतान न थी । वे हमेशा भगवान से प्रार्थना करते थे कि उन्हें एक संतान हो जाए । 

एक सुबह रानी राजमहल के सरोवर के किनारे हाथ जोड़कर सूर्यदेवता से प्रार्थना कर रही थी , कि तभी एक अद्भुत घटना हुई । सूर्य की किरणें सरोवर के किनारे रखे पत्थर पर पड़ी और वह पत्थर मेंढक में परिवर्तित हो गया । मेंढक ने भविष्यवाणी की कि एक वर्ष के भीतर रानी एक बेटी को जन्म देगी और ठीक वैसा ही हुआ । एक वर्ष बाद रानी के गर्भ से एक सुंदर लड़की का जन्म हुआ । उसके मुख पर सूर्य के किरणों सी चमक थी । उसका नाम रोजामंड रखा गया ।  


बेटी के जन्म की खुशी में राजा ने बहुत बड़े जश्न का आयोजन किया , जिसमें संपूर्ण राज्य वासियों को बुलाया गया । राज्य के बाहरी छोर पर स्थित सुनहरे वन में तेरह परियां रहा करतीं थी । राजा रानी ने उनमें से बारह परियों को तो बुलाया लेकिन वे तेरहवीं परी को बुलाना भूल गए । 


जश्न के दिन पूरे राजमहल में उल्लास का वातावरण था । संगीत-नृत्य के अलावे भोज का भी आयोजन किया गया था । नन्हीं राजकुमारी रोजामंड सोने के पालने में लेटी हुई थी । सभी मेहमान एक एक कर उसे उपहार और आशीर्वाद दे रहे थे । परियों ने भी रोजामंड को बेशकीमती उपहार और आशीर्वाद दिया । किसी ने सुंदरता का , किसी ने दयालुता का , किसी ने धन का । ग्यारह परियों ने रोजामंड को आशीर्वाद दिया । बारहवीं परी के आशीर्वाद देने से पहले ही तेरहवीं परी आ गई । वह बहुत गुस्से में थी । उसने रोजामंड को यह श्राप दे दिया कि अपने सोलहवें जन्मदिन के दिन उसे एक सुई चुभेगी और वह मर जाएगी । श्राप देकर वह चली गई । 

जश्न में उपस्थित सभी लोग आवाक रह गए । राजा रानी बहुत दुखी थे । वे परियों से प्रार्थना करने लगे कि किसी तरह रोजामंड को दिए श्राप को खत्म कर दे । परियों ने बताया कि किसी भी श्राप को खत्म नही किया जा सकता है । यह सुनकर रानी रोनी लगी । बारहवीं परी का आशीर्वाद शेष था । रानी को रोता देख वह बोली - " तेरहवीं परी का श्राप खत्म नही किया जा सकता , परंतु मैं अपने आशीर्वाद से उसे कम कर सकतीं हूँ ।"

उसने रोजामंड को आशीर्वाद दिया कि "अपने सोलहवें जन्म दिन पर सुई चुभने से वह नही मरेगी बल्कि सौ वर्षों के लिए गहरी नींद में सो जाएगी "। यह सुनकर राजा रानी का दुख कुछ कम हुआ और उन्होंने बारहवीं परी को धन्यवाद दिया । राजा रानी की इच्छा थी कि वे रोजामंड का विवाह देखे । वे परियों से बोले - "आपने तेरहवीं परी का श्राप कम तो कर दिया , इस बात की हमें बहुत खुशी है लेकिन दुख इस बात का हैं कि हम रोजामंड का विवाह नही देख पाएंगे । जब वह सौ वर्षों की नींद पूरी करके उठेगी तब तक हम मर चुके होंगे ।"


तब बारहवीं परी बोली - "जैसे ही रोजामंड सौ वर्षों के लिए सोयेगी , राजा-रानी सहित पूरी प्रजा भी सो जाएगी । रोजामंड के जगने पर ही सब जागेंगे । रोजामंड नींद से तब ही जगेगी जब एक सच्चा प्यार करने वाला राजकुमार उसे चूम लेगा।  " इसके बाद सभी परियां चली गई । परियों के जाने के बाद राजा ने हुक्म दिया कि राजमहल के सारे चरखे और सुइयां हटा दी जाए । वे रोजामंड को किसी भी तरह से तेरहवीं परी के श्राप से बचाना चाहते थे । 


समय के साथ रोजामंड बडी होने लगी , वह बहुत सुंदर होने के साथ दयालु और बुद्धिमान भी थी । समस्त प्रजा उससे प्रेम करती थी।  आखिरकार रोजामंड का सोलहवां जन्मदिन आ ही गया । राजा ने इस अवसर पर बड़े भोज का आयोजन किया किंतु वे चिंतित भी थे कि कहीं तेरहवीं परी का श्राप सच न हो जाए । पूरे दिन तो कुछ नहीं हुआ । शाम को एक सेवक रानी के पिता का पत्र लेकर आया , जिसमें सूचना थी कि रानी के पिता की तबीयत बहुत खराब हो गई है । राजा-रानी तुरंत उनसे मिलने निकल गए । राजमहल में अपनी विश्वासपात्र दासी डायना को उन्होंने सख्त हिदायत दी कि रोजामंड का ख्याल रखे और उसे महल से बाहर न आने दे । डायना रोजामंड के साथ साये की तरह रही लेकिन होनी को कौन टाल सकता है । रोजामंड डायना से छुपकर बगीचे में चली गई और वहां पक्षियों के साथ खेलने लगी । खेलते हुए उसकी नजर एक सुनहरी तितली पर पड़ी । उसे पकड़ने के लिए रोजामंड ने जैसे ही हाथ बढाया तितली उड़ गई । रोजामंड उसके पीछे भागने लगी । 
उड़ते-उड़ते वह तितली एक मीनार के पास पहुंची । वह एक पुरानी मीनार थी और बहुत ऊंची थी । तितली उस मीनार के अंदर चली गई । रोजामंड भी तितली के पीछे मीनार पर चली गई । मीनार में गोलाकार सीढ़ियाँ बनी हुई थी । वह तितली के पीछे सीढ़ियाँ चढ़ने लगी । तितली मीनार के सबसे ऊपर पहुंच गई और उसके पीछे रोजामंड भी । मीनार के उस हिस्से में एक कमरा बना हुआ था।  तितली के पीछे रोजामंड भी उस कमरे में चली गई । वहां एक बुढ़िया चरखा चला रही थी । रोजामंड ने कभी चरखा नहीं देखा था , वह आश्चर्य से देखने लगी । उसने बूढ़ी औरत से पूछा - आप यह क्या कर रही है? 


"मैं इस चरखे से सूत काट रही हूँ , क्या तुम भी सूत काटना चाहोगी ? " बूढ़ी औरत ने कहा । 


रोजामंड ने चरखा कभी नहीं देखा था इसलिए उसका सूत काटने का मन किया।  वह चरखे के पास बैठकर चरखा चलाने लगी । बुढ़िया उसकी ओर देखकर कुटिलता से मुस्कुरा रही थी । वह बूढ़ी औरत ओर कोई नही बल्कि दुष्ट तेरहवीं परी थी । 

चरखा चलाते हुए एक सुई रोजामंड की ऊँगली में चुभी और रोजामंड वही गिर गई। गिरते ही वह गहरी नींद में सो गयी । तेरहवीं परी का श्राप पूरा हो गया । वह वहां से हंसते हुए चल दी ।  
 
इधर जब राजा-रानी महल में लौटे तो रोजामंड को महल में न पाकर वे परेशान हो गए। राजा ने सैनिकों को चारो ओर रोजामंड को तलाशने के लिए भेजा । वह स्वयं भी रोजामंड की खोज में इधर-उधर भागने लगा । खोजते-खोजते वे मीनार पर उसी कमरे में पहुंचे जहां रोजामंड सोई हुई थी । सामने चरखा भी था । सभी समझ गए कि तेरहवीं परी ने अपना काम पूरा कर दिया है । 

रानी यह देखकर विलाप करने लगी लेकिन राजा ने समझाया कि कुछ ही देर में हम सब भी सो जाऐंगे सो हमें रोजामंड को लेकर राजमहल चलना चाहिए । रोजामंड को राजमहल ले जाकर तैयार किया गया और उसे मखमली बिछौने पर लिटा दिया गया । सोती हुई राजकुमारी रोजामंड बहुत ही सुन्दर लग रही थी । कुछ ही देर में राजा-रानी , दरबारी और सारी प्रजा भी सो गई । राज्य के ऊपर काला बादल छा गया और राज्य अंधेरे में डूब गया । समय बीतने के साथ राज्य के चारों ओर कंटीली झाड़ियां उग आई और राज्य उसके पीछे छुप गया । 



अब वह राज्य बस किस्से कहानियों में रह गया और सोई हुई राजकुमारी की कहानी दूर-दूर तक फैल गई । राजकुमारी को देखने की इच्छा से कई राजकुमार आए परंतु वे कंटीली झाड़ियों को पार न कर पाते और घायल होकर लौट जाते , कई तो मर भी गए । राजकुमारों के मरने की खबर सुनकर लोगो ने वहां जाना छोड़ दिया । 

 

ऐसे ही सौ वर्ष बीत गए । एक दिन इवान नामक राजकुमार ने सोई हुई राजकुमारी के बारे में सुना । उसकी कहानी सुनकर वह उसे चाहने लगा । उसने तय किया कि वह उसे देखने एक बार जरूर जाएगा । खतरे को देखते हुए सभी ने उसे मना किया पर वह न माना और निकल पड़ा ।  

कई दिनों की लंबी यात्रा के बाद राजकुमार इवान कंटीली झाड़ियों के पीछे छुपे उस राज्य में पहुंचा । जिस दिन वह वहां पहुंचा रोजामंड को सोए सौ साल पुरे हो चुके थे । राजकुमार ने कंटीली झाड़ियों को किसी तरह से अपनी तलवार से काटा और राज्य में घुसा। राज्य के अंदर घुसने पर उसने देखा कि सारी प्रजा सोई हुई है। वह राजमहल के पास गया तो दरबानो को भी सोता पाया । राजमहल के अंदर राजा-रानी और दरबारियों को सोता हुआ देखा । महल में घूमता हुआ अंततः वह रोजामंड के कक्ष में पहुंचा । 

सोई हुई राजकुमारी को देखकर राजकुमार इवान का प्रेम उसके लिए और बढ गया।  वह उसके पास गया और रोजामंड का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे चूम लिया । जैसे ही राजकुमार ने उसका हाथ चूमा दुष्ट तेरहवीं परी का श्राप खत्म हो गया और उसकी नींद खुल गई । 

आंख खोलते ही रोजामंड ने एक सुंदर राजकुमार को अपने पास पाया । वह समझ गई कि यही वो राजकुमार है जो उससे सच्चा प्यार करता है और उसे नींद से जगाने आया है । राजकुमार ने भी उसके सामने अपने प्यार का इजहार किया और विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे रोजामंड ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया । 

दोनों उस कमरे से निकल कर बाहर आए तो देखा कि राजा-रानी भी नींद से जाग चुके हैं । सबने रोजामंड और राजकुमार का स्वागत किया । राजकुमारी ने अपने माता-पिता से राजकुमार इवान को मिलवाया । 

राजा-रानी राजकुमार से मिलकर बहुत खुश हुए । राजकुमार ने उनसे रोजामंड का हाथ मांगा और उन्होंने खुशी-खुशी रोजामंड का हाथ राजकुमार के हाथों में दे दिया । 

राज्य के ऊपर छाए काले बादल हट गए और सूर्य फिर से चमकने लगा । सबने सूर्य देवता को प्रणाम किया और उन्हें धन्यवाद दिया । उसी दिन रोजामंड और राजकुमार का विवाह कर दिया गया । 

                    जब रोजामंड और राजकुमार का विवाह हुआ तो सूर्य से एक आग का गोला निकला और दूर जंगल में बनी तेरहवीं परी की झोपड़ी पर गिरा । झोपड़ी के साथ वह भी जलकर मर गई । 

रोजामंड और राजकुमार इवान खुशी से रहने लगे । 

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