चक्रवर्ती राजा भोज परमार / Chakarvarti Raja Bhoj Parmar
राजा भोज परमार वंश के नवें राजा थे । परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वाध तक राज्य किया । भोज ने कई प्रसिद्ध युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की। यद्यपि भोज का अधिकतर समय युद्ध में ही बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की कोई गलती नहीं की । उन्होंने मालवा के बहुत से गावों में मंदिरों का निर्माण करवाया । ऐसा माना जाता है कि भोपाल शहर को राजा भोज ने ही बसाया था जिसका नाम पहले भोजपाल नगर था ।
15 वर्ष की अल्पायु में सिंहासन पर बैठने वाले राजा भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे हुए थे । उत्तर में तुर्कों , दक्षिण मे विक्रम चालुक्य , पूर्व में युवराज कलचुरी तथा पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें लोहा लेना पड़ा । उन्होंने सबसे लडाई जीती और अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया । तेलंगान के तेलप और तिरहुत को हराने के बाद एक कहावत राजा भोज के बारे में बहुत मशहूर हुई - "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली "
पढ़े :- कहां राजा भोज कहां गंगू तेली
राजा भोज महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे । भोज का जन्म सन् 980 ई. में उज्जयिनी नगरी में हुआ था और 15 वर्ष की छोटी आयु में वे मालवा के राजसिंहासन पर बैठे । इतिहासकारो के अनुसार राजा भोज परमार मालवा के परमार वंश के नवें यशस्वी राजा थे । उन्होंने सन् 1018ई. से लेकर 1060ई. तक शासन किया था । भोजराज इसी महाप्रतापी वंश की पांचवी पीढ़ी मे थे ।
राजा भोज जीवन परिचय :-
परमारवंशीय राजाओं ने उज्जैन के जगह धार को अपनी राजधानी बनाई । राजा भोज परमार से संबंधित कई शिलालेख , ताम्रपत्र आदि प्राप्त होते हैं । राजा भोज को उनके कार्यों के कारण 'नवविक्रमादित्य' भी कहा जाता है। भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे । उनकी पत्नी का नाम लीलावती था ।
राजा भोज खुुद एक बहुत बड़़े विद्वान थे उन्होंने बहुत सारी किताबें भी लिखी । उन्होंने अनेक विषयों में लगभग 84 ग्रंथो की रचना की , जिसमें धर्म , ज्योतिष ,
आयुर्वेद , व्याकरण , वास्तुशिल्प , विज्ञान , कला , नाट्यशास्त्र , संगीत , योगशास्त्र , दर्शन , राजनीतिशास्त्र प्रमुख है ।
भोज प्रबंधनम् नाम से उनकी आत्मकथा है । हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवा कर धार नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई जो हनुमाननाष्टक के रूप में विश्वविख्यात है । तत्पश्चात उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की जो अपने गद्यकाव्य के लिए विख्यात हैं ।
राजा भोज परमार के निर्माण कार्य :-
वर्तमान मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमें आज देखने को मिलते है वे इन्ही राजा भोज की देन है । चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजमंदिर हो या फिर विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा का केन्द्र उज्जैन का महाकालेश्वर मन्दिर , धार की भोजशाला या फिर भोपाल का विशाल तालाब सभी राजा भोज परमार की देन हैं ।
राजा भोज ने नदियों को जोड़ने का कार्य किया उन्होनें कई नहरों का निर्माण करवाया । भोज ने भोजपुर में एक विशाल तालाब का निर्माण करवाया था , जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी ज्यादा विस्तृत है । यह सरोवर पंद्रहवी शताब्दी तक विद्यमान था ।
उन्होंने जहां भोजनगरी की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन , विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरों को नया स्वरूप प्रदान किया । उन्होंने केदारनाथ , सोमनाथ , रामेश्वरम आदि मंदिरों का निर्माण करवाया जो आज हमारी समृद्धशाली संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं । राजा भोज परमार ने शिव मंदिरों के साथ-साथ सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण करवाया था । राजा भोज परमार ने ' सरस्वतीकण्ठभरण' नामक भवनों का निर्माण धार , मांडव तथा उज्जैन में करवाया ।
गुजरात के सोमनाथ मंदिर में जब महमूद गजनवी ने हमला कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया , जब यह समाचार राजा भोज तक पहुंचा तो वे बहुत दुखी हुए और सन् 1026 में इसका बदला लेने के लिए उन्होंने गजनवी पर हमला कर दिया जिससे गजनवी सिंध के रेगिस्तान में भागने को मजबूर हुआ ।
राजा भोज परमार ने हिन्दुओं की संयुक्त सेना एकत्रित कर गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास युद्ध करके उसे मार डाला और सोमनाथ का बदला लिया ।
मालवा के राजा भोज परमार चक्रवर्ती , प्रतापी , काव्य और वास्तुकला में निपुण एक विद्वान और महान शासक थे । उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी । उन्हें प्रजावत्सल राजा भी कहा जाता है । परंतु अपने शासन के अंतिम दिनों में राजा भोज परमार को पराजय का अपयश झेलना पड़ा था । गुजरात के चालुक्य राजा तथा चेदि नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया । इसके बाद ही उनकी मृत्यु हो गई ।
राजा भोज परमार की एक प्रसिद्ध कथा :-
एक रात राजा भोज अपने सर्वाधिक आरामदायक एवं मणियों से जड़े बहुमूल्य पलंग पर विश्राम कर रहे थे । अपने जीवनकाल में किए उत्कृष्ट कार्यो एवं महान उपलब्धियों पर उन्हें बहुत अभिमान हो रहा था । प्रजा के हित के लिए उन्होंने बहुत से कार्य किए इसलिए प्रजा भी उन्हें बहुत प्रेम करतीं थी और उन्हें धरती का देवता कहते थी । यह सब सोचते हुए राजा को नींद आ जाती है । वे जब गहरी निंद्रा में सोये रहते हैं तो उनके स्वपन में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरूष के दर्शन हुए ।
भोज ने उनसे पूछा - महात्मा , आप कौन हैं ?
वृद्ध महापुरुष ने कहा - राजन् ! मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूं । मेरे पीछे चाला आ और अपने कार्यों की वास्तविकता देख !
राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए । राजा भोज ने बहुत दान , पुण्य किए उन्होंने अनेक तालाब , मंदिरों , कुएं , बगीचों आदि का निर्माण करवाया था । वह वृद्ध राजा भोज को उनकी कृतियों के पास ले गया । वहां जैसे ही वृद्ध ने पेड़ो को छुआ , सब एक एक कर सुख गया , बाग-बगीचे बंजर हो गया ।
राजा आश्चर्य से यह सब देख रहे थे । फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया । उसने जैसे ही मंदिर को छुआ वह खंडहर में बदल गया । उनके धर्म-कर्म सब राख हो गया । राजा भोज परमार यह सब देखकर विक्षिप्त से हो गए ।
वृद्ध (सत्य ) ने कहा - राजन् ! यश की इच्छा से किया गया कार्य केवल अहंकार की पुष्टि करता है । इससे धर्म का निर्वहन नहीं होता है । जो कार्य सच्चे मन से निस्वार्थ भाव से किया जाए वही पुण्य है ।
इतना कहकर वृद्ध गायब हो गया और उसी समय राजा भोज की आँखे खुल गई , उन्होंने वृद्ध की बातों पर बहुत सोचा । उस रात उनका सारा अहंकार खत्म हो गया ।
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