मगध सम्राट बिम्बिसार की जीवनी / Magdha samrat Bimbisar ki Jivani
मगध के इतिहास का वास्तविक आरंभ हर्यक वंश के साथ होता है । इस वंश से पहले के वंशों का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है, जिसके अनुसार मगध के प्राथमिक राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की जो जरासंघ का पिता और वसु का पुत्र था ।
बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ । बिम्बिसार की राजधानी गिरिवज्र ( राजगीर ) थी । वे पंद्रह वर्ष की आयु में ही राजा बने । प्रसेनजित की बहन और कोसल की राजकुमारी महाकौशला इनकी महारानी और अजातशत्रु की माता थी। चेल्लना , खेमा , सीलव और जयसेना नामक अन्य पत्नियां थी । विख्यात नृत्यांगना आम्रपाली से इन्हें एक पुत्र था । बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे । महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियां थी
बिम्बिसार हर्यक वंश का संस्थापक था । वह एक महत्वकांक्षी राजा था । उसने वैवाहिक संबंधों , संधियों और विजयों के द्वारा मगध की प्रतिष्ठा बढ़ाई । तिब्बत साहित्य में उसका नाम महापद्य दिया गया है । बिम्बिसार का दूसरा नाम श्रेणिक था । वह महात्मा बुद्ध का समकालीन था । पुराणों के अनुसार उसने 28 वर्षों तक शासन किया। बिम्बिसार ने 544 ई पूर्व से 492 ई पूर्व तक शासन किया । बिम्बिसार एक कुशल राजनीतिज्ञ था । अपने राज्य को सुदृढ़ और संगठित करने के लिए अनेक राज्यों से वैवाहिक संबंध स्थापित किया । उसने कौशल राज्य के राजा महाकौशल की पुत्री कौशला देवी से विवाह किया और कौशल की मित्रता प्राप्त कर ली ।
मगध के पूर्व मे स्थित अंग पर बिम्बिसार ने आक्रमण किया और उसे जीत कर अपने राज्य मे मिला लिया । अंग एक शक्तिशाली राज्य था जिससे मगध को खतरा हो सकता था । अंग जीतने के बाद बिम्बिसार ने वहां के राजा ब्रह्मदत्त को मार डाला और वहां का उपराजा अपने पुत्र अजातशत्रु को बनाया । अंग बहुत समृद्धशाली राज्य था उसकी राजधानी चंपानगरी गंगा के तट पर एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था । बिम्बिसार के समय उसके राज्य में अस्सी हजार गांव और उसका राज्य 1700 वर्गमील तक विस्तृत था ।
बौद्ध ग्रंथो के अनुसार बिम्बिसार ने गौतम बुद्ध को पहली बार अपने महल की खिड़की से देखा था । उसने बुद्ध को अपने राज-दरबार में आने का न्योता दिया परंतु बुद्ध ने यह कहकर मना कर दिया कि वे ज्ञान की खोज में है । उस समय बिम्बिसार ने उनसे प्रार्थना की कि ज्ञान प्राप्ति के पश्चात वे राजगीर अवश्य आए । बाद में बुद्ध ने अपना वचन पूरा किया और बिम्बिसार के दरबार में आकर उन्हें उपदेश दिया । वह बौद्ध धर्म का कट्टर अनुयायी बन गया और आजीवन बौद्ध धर्म को संरक्षित किया ।
बौद्ध ग्रंथ 'विनयपिटक' के अनुसार बिम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को युवराज घोषित कर दिया परंतु उसे साम्राज्य पाने की इतनी जल्दी थी कि उसने पिता बिम्बिसार को ही कैद कर लिया । कैद में ही उनकी मौत हो गई । उसे ऐसा करने के लिए बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने उकसाया था और कई घृणित षड्यंत्र भी रचा । जैनियों के ग्रंथ अनुसार अजातशत्रु ने राज्य की लालसा में अपने पिता को कैद कर लिया , जहां रानी चेल्लना ने उनकी देखभाल की । बाद में अजातशत्रु को सच का पता चलता है और वह अपने पिता की बेड़ियां काटने के लिए कारागृह जाता है परंतु बिम्बिसार किसी अनिष्ट की आशंका मे जहर खा लेते हैं ।
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