चाणक्य और चन्द्रगुप्त भाग-3
चन्द्रगुप्त की शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य चाणक्य की देखरेख में पूर्ण हुई । उन्होंने चन्द्रगुप्त को हर विपत्ति से लड़ने के लिए तैयार किया क्योंकि उनका लक्ष्य आसान नहीं था । मगध जैसे शक्तिशाली राष्ट्र को जीतना कोई बच्चों का खेल न था ।
मगध का राजा घनानंद नीच जन्मा और क्रूरता से भरा हुआ था इसलिए उसके राज्य की प्रजा में असंतोष व्याप्त था ।
वह अत्यधिक धन का लोभी था इसलिए उसने अपने राज्य में करों को भी बढ़ा दिया था । यहां तक कि वह मुर्दा जलाने के लिए भी कर वसूली करता था । उसे अपने राज्य के सुरक्षा की कोई चिंता नहीं थी ,सारा भार उसके अमात्य प्रमुख 'मुद्राराक्षस ' पर था ।
पोरव राष्ट्र के राजा पोरस से सिकंदर का भयंकर युद्ध हुआ परंतु दोनों को अंतिम में संधि करनी पड़ी। जब सिकंदर अपनी सेना के साथ व्यास नदी पार कर मगध पर आक्रमण करना चाहता था तो आचार्य चाणक्य ने अपने शिष्य चन्द्रगुप्त की मदद से सिकंदर की सेना में बहुत भ्रम फैलाया। चन्द्रगुप्त ने ग्रीक छावनी में जाकर उनके राष्ट्र ध्वज को जला दिया जिससे सैनिकों के मन में डर पैदा हो गया क्योंकि वे इस तरह ध्वज का जलना अपशगुन मानते थे ।
चाणक्य नहीं चाहते थे कि सिकंदर मगध पर आक्रमण करे क्योंकि भले ही मगध की सेना बहुत बड़ी थी परंतु फिर भी घनानंद सिकंदर को नहीं हरा सकता था । घनानंद की सेना में एक असंतोष व्याप्त था उसके विरुद्ध । फिर भी चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सैनिकों में यह बात फैलाया कि मगध की सेना बहुत बड़ी और शक्तिशाली है।
आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त के प्रयासों के चलते ही सिकंदर भारत से लौटने पर मजबूर हुआ क्योंकि उसकी सेना ने आगे बढने से मना कर दिया था। वे काफी थक चुके थे और उनमें मगध की सेना से लड़ने का सामर्थ्य नही था ।
मगध का राजा घनानंद नीच जन्मा और क्रूरता से भरा हुआ था इसलिए उसके राज्य की प्रजा में असंतोष व्याप्त था ।
वह अत्यधिक धन का लोभी था इसलिए उसने अपने राज्य में करों को भी बढ़ा दिया था । यहां तक कि वह मुर्दा जलाने के लिए भी कर वसूली करता था । उसे अपने राज्य के सुरक्षा की कोई चिंता नहीं थी ,सारा भार उसके अमात्य प्रमुख 'मुद्राराक्षस ' पर था ।
पोरव राष्ट्र के राजा पोरस से सिकंदर का भयंकर युद्ध हुआ परंतु दोनों को अंतिम में संधि करनी पड़ी। जब सिकंदर अपनी सेना के साथ व्यास नदी पार कर मगध पर आक्रमण करना चाहता था तो आचार्य चाणक्य ने अपने शिष्य चन्द्रगुप्त की मदद से सिकंदर की सेना में बहुत भ्रम फैलाया। चन्द्रगुप्त ने ग्रीक छावनी में जाकर उनके राष्ट्र ध्वज को जला दिया जिससे सैनिकों के मन में डर पैदा हो गया क्योंकि वे इस तरह ध्वज का जलना अपशगुन मानते थे ।
चाणक्य नहीं चाहते थे कि सिकंदर मगध पर आक्रमण करे क्योंकि भले ही मगध की सेना बहुत बड़ी थी परंतु फिर भी घनानंद सिकंदर को नहीं हरा सकता था । घनानंद की सेना में एक असंतोष व्याप्त था उसके विरुद्ध । फिर भी चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सैनिकों में यह बात फैलाया कि मगध की सेना बहुत बड़ी और शक्तिशाली है।
आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त के प्रयासों के चलते ही सिकंदर भारत से लौटने पर मजबूर हुआ क्योंकि उसकी सेना ने आगे बढने से मना कर दिया था। वे काफी थक चुके थे और उनमें मगध की सेना से लड़ने का सामर्थ्य नही था ।
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