शेख चिल्ली का सपना
देवीकोट नाम के एक नगर में देवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। यजमानों के दान से उसकी आजीविका चलती थी। एक बार बैसाख सक्रांति के अवसर पर किसी यजमान ने उसे सत्तुओं से भरा एक सकोरा दिया। उसे लेकर देवशर्मा अपने घर चल दिया।
ज्येष्ठ-आसाढ़ की गर्मी थी। नीचे से मार्ग की गर्म-गर्म मिट्टी उसके पैर जला रही थी और ऊपर से जलता सूर्य उसके सिर पर आग बरसा रहा था।
इस धूप से बचने के लिए उसने आस-पास छाया के लिए निगाहें दौड़ाई तो एक ओर उसे एक कुम्हार का घर दिखाई दिया। उसे तो मानो डूबते को तिनके का सहारा मिल गया ।
कुम्हार के घर के पास ही मिट्टी के बर्तनों का एक भारी ढेर लगा हुआ था। विश्राम करने के लिए वह कुम्हार की कोठरी के समीप ही बैठ गया। सकोरा उसने एक ओर रख दिया और सकोरा की रक्षा के लिए डंडा हाथ में पकड़ लिया।
बैठे-बैठे वह सोचने लगा कि यदि मैं सत्तुओं से भरे इस सकोरे को बेच दूं तो कम से कम दस कौड़ियां तो मुझे मिल ही जाएंगी। फिर मैं उन कौड़ियों से इस कुम्हार के घड़े और सकोरे खरीद लूंगा, फिर उनको भी बेच दूंगा और उससे जो धन प्राप्त होगा, उससे सुपारी आदि खरीद लूंगा। फिर सुपारी आदि को बेचकर जो रकम मिलेगी, उससे वस्त्र खरीदूंगा और उनका व्यापार करूंगा। इसी प्रकार क्रय-विक्रय करते हुए एक दिन मैं लखपति बन जाऊंगा।
लखपति बनकर मैं एक नहीं दो नहीं बल्कि चार-चार विवाह करूंगा। उनमें से जो सबसे अधिक सुंदर होगी, उसे मैं हृदय से प्यार करूंगा।
मेरी बाकी तीनों पत्नियां मेरी उस सुंदर पत्नी से ईष्या करेंगी, आपस में लड़ेंगी और झगड़ेंगी।
उस समय मेरे बार-बार मना करने पर भी जब वह न मानेंगी तो मैं उन्हें डंडे से ऐसे पीटूंगा। इतना सोचकर ज्यों ही उसने अपना डंडा चलाया, उसके सकोरे के साथ-साथ कुम्हार के भी कई बर्तन फूट गए।
डंडे से बर्तनों के टूटने पर कुम्हार वहां आया। उसने जब अपने कई बर्तन टूटे देखे तो ब्राह्मण को बहुत फटकारा और तत्काल उसे वहां से भगा दिया।'
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कुम्हार के घर के पास ही मिट्टी के बर्तनों का एक भारी ढेर लगा हुआ था। विश्राम करने के लिए वह कुम्हार की कोठरी के समीप ही बैठ गया। सकोरा उसने एक ओर रख दिया और सकोरा की रक्षा के लिए डंडा हाथ में पकड़ लिया।
बैठे-बैठे वह सोचने लगा कि यदि मैं सत्तुओं से भरे इस सकोरे को बेच दूं तो कम से कम दस कौड़ियां तो मुझे मिल ही जाएंगी। फिर मैं उन कौड़ियों से इस कुम्हार के घड़े और सकोरे खरीद लूंगा, फिर उनको भी बेच दूंगा और उससे जो धन प्राप्त होगा, उससे सुपारी आदि खरीद लूंगा। फिर सुपारी आदि को बेचकर जो रकम मिलेगी, उससे वस्त्र खरीदूंगा और उनका व्यापार करूंगा। इसी प्रकार क्रय-विक्रय करते हुए एक दिन मैं लखपति बन जाऊंगा।
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