चतुर ग्वालिन / chatur gwalin

द्वारावती नामक नगरी में एक ग्वाला रहता था।उसकी पत्नी व्याभिचारिणी थी।उसने गांव के मुखिया और उसके बेटे के साथ अपने अवैध संबंध बनाए हुए थे।
  एक बार वह ग्वालिन मुखिया के बेटे के साथ विहार कर रही थी उसी समय स्वयं मुखिया भी उसका साथ पाने के लिए उसके घर आ पहुंचा। उसे आया देख उस कुलटा ने मुखिया के बेटे को तो एक बडे़ से अन्न के बखार के पीछे छिपा दिया और स्वयं मुखिया के साथ आंनद करने लगी।


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                संयोग की बात है उसी समय उसका पति भी अपना काम समाप्त करके घर पर आ पहुंचा। उसे देख उस कुलटा ने चतुराई खेली। उसने मुखिया से कहा-'मुखिया जी तुम तो गांव के लोगों को दंड देते हो। गुस्से से अपनी लाठी पटकते हुए यहां से निकल जाओ।'
मुखिया ने वैसा ही किया।
जब मुखिया चला गया तो ग्वाले ने आकर अपनी पत्नी से पूछा-'यह मुखिया यहां क्यों आया था?'
इस पर वह कुलटा कहने-'किसी कारणवश यह अपने बेटे से नाराज हो गया था। इसका बेटा इससे डरकर भागा और यहां मेरे पास आ गया। मैंने उसे बखार के पीछे दिया है। मुखिया उसी का पीछा करता हुआ यहां खोज-बीन करने आया था किन्तु जब यहां उसका अपना बेटा नहीं मिला तो बडबड़ाता हुआ यहां से चला गया है।'
यह कहकर उसने मुखिया के बेटे को बखार से बाहर आने को कह दिया। मुखिया का बेटा बाहर आ गया। उसे देखकर ग्वाले को अपनी कुलटा पत्नी की बात पर विश्वास हो गया। इस प्रकार की कुटिल स्त्रियां बहुत चतुर होती हैं।

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