आरंभ
बहुत समय पहले भागीरथी(गंगा) के तट पर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) नामक एक नगर बसा हुआ था | उस नगर मे सुदर्शन नाम का एक राजा राज करता था| राजा सुदर्शन सम्पन्न राजा थे | उसनें एक बार किसी व्यक्ति के मुख से दो श्लोक सुने |
पहले श्लोक का मतलब था :-
अनेक संशयों को दूर करने वाला एंव छिपे हुये अर्थ को दिखाने वाला, इन सबका शास्त्र 'नेत्र' ही होता हैं| जिसके पास यह ज्ञान रूपी नेत्र नहीं, वह अंधा हैं| यौवन, धन-संपति, प्रभुत्व, अविवेकता ये सभी वस्तुएं अनर्थ करने वाली हैं | फिर जिसके पास यह चारों हो तो उसका कहना ही क्या |
दूसरे श्लोक का अर्थ था:-
उस पुत्र के उत्पन्न होने से क्या लाभ, जो न विद्वान है, न धार्मिक | जैसे काणी आंख से क्या लाभ, वह तो केवल पीडा ही देती हैं|
इन श्लोको को सुनकर राजा को अपने पुत्रों का विचार हो आया | उसके पुत्र न केवल विधा-विहीन थे, अपितु वे कुमार्ग पर भी चल पडे थे | राजा विचार करने लगे और इस प्रकार चिंतन करते हुए राजा ने अपनी पंडित-सभा बुलवाई|उस सभा मे राजा ने अपनी व्यथा को बताते हुए कहा-''हे श्रेष्ठ गुणीजनों! मुझे अपने पुत्रों की बहुत चिंता है|ऐसा प्रतीत होता हैं कि मेरे पुत्र मेरे वंश को कलंकित करेंगे|संसार में उसी पुत्र का जन्म होना सार्थक होता हैं जो अपने कुल की मान-सम्मान बढाएं|निरर्थक पुत्रों से क्या लाभ? मेरा निवेदन है कि यहां उपस्थित विद्वानों में जो कोई भी विद्वान मेरे पुत्रों को नीतिशास्त्र मे निपुण बना दे, मैं उसका उपकार मानूंगा| इस कार्य के लिए मैं छः मास का समय देता हूँ|''
सभा में सन्नाटा छा गया| किसी भी विद्वान मे राजपुत्रों
को इतने थोडे समय में राजनीतिज्ञ बना देने की सामथ्र नहीं था|केवल विष्णु शर्मा नाम का एक विद्वान अपने आसन से उठा और बोला-"हे राजन।मैं वचन देता हूं कि छः महीने के अंदर-अंदर मैं राजपुत्रों को राजनीतिज्ञ बना दूंगा|"
यह सुनकर राजा ने अपने पुत्रों को बुलवाया और उनको आचार्य विष्णु शर्मा की शरण में सौंपकर सम्मानपूर्वक पंडितजी को विदा कर दिया |
पहले श्लोक का मतलब था :-
अनेक संशयों को दूर करने वाला एंव छिपे हुये अर्थ को दिखाने वाला, इन सबका शास्त्र 'नेत्र' ही होता हैं| जिसके पास यह ज्ञान रूपी नेत्र नहीं, वह अंधा हैं| यौवन, धन-संपति, प्रभुत्व, अविवेकता ये सभी वस्तुएं अनर्थ करने वाली हैं | फिर जिसके पास यह चारों हो तो उसका कहना ही क्या |
दूसरे श्लोक का अर्थ था:-
उस पुत्र के उत्पन्न होने से क्या लाभ, जो न विद्वान है, न धार्मिक | जैसे काणी आंख से क्या लाभ, वह तो केवल पीडा ही देती हैं|
इन श्लोको को सुनकर राजा को अपने पुत्रों का विचार हो आया | उसके पुत्र न केवल विधा-विहीन थे, अपितु वे कुमार्ग पर भी चल पडे थे | राजा विचार करने लगे और इस प्रकार चिंतन करते हुए राजा ने अपनी पंडित-सभा बुलवाई|उस सभा मे राजा ने अपनी व्यथा को बताते हुए कहा-''हे श्रेष्ठ गुणीजनों! मुझे अपने पुत्रों की बहुत चिंता है|ऐसा प्रतीत होता हैं कि मेरे पुत्र मेरे वंश को कलंकित करेंगे|संसार में उसी पुत्र का जन्म होना सार्थक होता हैं जो अपने कुल की मान-सम्मान बढाएं|निरर्थक पुत्रों से क्या लाभ? मेरा निवेदन है कि यहां उपस्थित विद्वानों में जो कोई भी विद्वान मेरे पुत्रों को नीतिशास्त्र मे निपुण बना दे, मैं उसका उपकार मानूंगा| इस कार्य के लिए मैं छः मास का समय देता हूँ|''
सभा में सन्नाटा छा गया| किसी भी विद्वान मे राजपुत्रों
को इतने थोडे समय में राजनीतिज्ञ बना देने की सामथ्र नहीं था|केवल विष्णु शर्मा नाम का एक विद्वान अपने आसन से उठा और बोला-"हे राजन।मैं वचन देता हूं कि छः महीने के अंदर-अंदर मैं राजपुत्रों को राजनीतिज्ञ बना दूंगा|"
यह सुनकर राजा ने अपने पुत्रों को बुलवाया और उनको आचार्य विष्णु शर्मा की शरण में सौंपकर सम्मानपूर्वक पंडितजी को विदा कर दिया |
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