वृद्ध वणिक की युवा पत्नी की कथा

गौड़ देश में कौशाम्बी नाम की एक नगरी हुआ करती थी।किसी समय वहां चंदनदास नाम का एक धनी महाजन रहता था।चंदनदास की पत्नी का देहांत हो चुका था किंतु अपने धन के बल पर उसने वृद्वावस्था मे एक गरीब व्यक्ति की कन्या लीलावती के साथ विवाह कर लिया।
महाजन वृद्ध था और उसकी पत्नी नितांत युवती।बूढ़ा महाजन उसकी संतुष्टि करने में असमर्थ था।इसलिए शीध्र ही उसकी पत्नी एक जवान वणिकपुत्र की ओर आकृष्ट हो गई और दोनों के बीच अंतरंग संबंध स्थापित हो गए।
         लीलावती का पति यधपि वृद्व था किन्तु वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्यार करता था।क्योंकि यह संसार-भर के प्राणियों का स्वभाव है कि उनमें धन और जीवन की आशा हमेशा बढती ही रहती है।
एक दिन की बात है कि लीलावती सुन्दर बिछौने वाले गुदगुदे पलंग पर बैठी अपने उस प्रेमी वणिकपुत्र के साथ वार्तालाप कर रही थी कि तभी उसका बूढ़ा पति वहां आ गया। उसे देखकर सहसा लीलावती अपने प्रेमी के पास से उठी और अपने पति के समीप जाकर उसके बांह और बाल पकड़कर उसके शरीर से लिपट गई और बार-बार उसको चूमने लगी।इस बीच मौका देखकर उसका प्रेमी वहां से भाग गया।
                     लीलावती की पडोसिन ने जब उसे इस प्रकार अपने पति से लिपटते देखा तो वह सोचने लगी कि आज लीलावती को क्या हो गया है, जो यह इस प्रकार अपने पति को चूम रही है?पडोसिन कारण जानने को बेचैन हो गई। अन्ततः उसने इसका कारण खोज ही लिया और लीलावती को उसका भेद खोल देने की धमकी दी। तब उस दुराचारिणी ने अपनी पडोसिन का मुहं गुप्त दंड(धन) देकर भर दिया। इस प्रकार लीलावती अपने पाप को छिपा गई।
                   इसलिए कहा गया है कि संसार में धनवान मनुष्य ही सदा से बलवान रहते आए हैं। धन ही प्रभुता का मूल होता है।

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० चतुर ग्वालिन

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