अधिक संचय अहितकर

कल्याण कटक नाम की एक बस्ती में भैरव नाम का एक बहेलिया रहता था।एक बार वह मृगों की खोज करता हुआ विंध्याचल के घने जंगल मे चला गया। वहां उसने एक हिरण का शिकार किया और जब वह उसे अपने कंधे पर लादे वापस अपने घर की ओर लौट रहा था, तभी रास्ते में उसे एक बहुत बड़ा सूअर दिखाई दे गया।
      अधिक शिकार प्राप्त करने के लालच में बहेलिए ने हिरण को तो धरती पर पटक दिया और अपने धनुष पर तीर चढ़ाकर सूअर को निशाना बना लिया। लेकिन सूअर भी कुछ कम न था। तीर खाकर भी वह बहेलिए पर झपटा और उसके संधिभाग(जांघों के बीच) मे इतने जोरों की टक्कर मारी कि बहेलिया वहीं ढेर हो गया।
बहेलिए के गिरते ही सूअर भी जमीन पर गिर पड़ा। निकट से ही एक सर्प वहां से गुजर रहा था। जैसे ही सूअर उस पर गिरा वह भी वहीं ढेर हो गया।
     संयोग कहिए अथवा दुदैव, तभी एक गीदड़ अपने शिकार की खोज करता हुआ वहां आ पहुंचा। उसने जो दृष्टि घुमाई तो जमीन पर पडे़ हुए मृत बहेलिया, सूअर, हिरण और सर्प उसे दिखाई दे गए।यह देखकर वह मन-ही-मन खुश हो गया और सोचने लगा कि आज तो ईश्वर ने बिना परिश्रम किए ही उसके लिए इतना ढेर सारा भोजन भेज दिया है। इतने ढेर सारे मांस से तो मेरा कई महीने का काम चल जाएगा।
गीदड़ वहीं खड़ा हो गया और विचार लगा कि पहले किसको खाया जाए।उसने सोचा-एक महीने तो इस मनुष्य का मांस चलेगा ही, दो महीने इस सूअर और हिरण का मांस भी चल जाएगा और फिर यह सांप भी तो है। एक दिन तो इसका मांस खाकर भी गुजारा किया जा सकता है। तभी उसे कुछ दूर पड़ा बहेलिए का धनुष भी दिखाई दे गया। तब वह सोचने लगा कि बाकी शिकार तो मैं कभी भी खा सकता हूं, पर धनुष पर चढ़ी यह तांत सूख जाएगी, इसलिए आज तो इसी को खाकर अपना गुजारा चलाता हूं।
यही सोचकर उसने तांत पर अपना दांत गड़ा दीए। डोरी रूपी कसी तांत जैसे ही टूटी, धनुष का एक कोना उछलकर गीदड़ की छाती मे जा घुसा।बस फिर क्या था, उस गीदड़ की भी वहीं पर तत्काल मृत्यु हो गई।
                       इसलिए कहा गया है 'अति संचय अहितकर है।उतने को ही अपना समझो जो तुमने उपयोग में लिया है। जो बचा रह गया, उसे तो इस प्रकार समझना चाहिए जैसे कि तुम किसी दूसरे के धन की रक्षा कर रहे हो।'

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