महात्मा बुद्ध और आम्रपाली / Mahatma Buddha aur Amarapali
एक बार कि बात है, महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ घूमते
हुए वैशाली नगरी में पहुंचे। वैशाली को उस समय सोलह
महाजनपतो में एक महत्वपूर्ण जनपद माना जाता था,
जिसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी । यह नगरी परम
वैभवशाली और हर तरफ से संपन्न थी ।
महात्मा बुद्ध के आने की
बात पूरे नगर में फैलते देर न लगी । जिसे जब पता चलता
वह तभी उनसे मिलने पहुंच जाता और उनके उपदेश सुनकर
खुद को भाग्यशाली समझता। बुद्ध का चरित्र ही ऐसा
प्रभावशाली था कि उनसे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह
सका । उस नगर की गणिका और राजनर्तकी "आम्रपाली"
भी बुद्ध से मिलने की इच्छुक थी । वह खुद महात्मा बुद्ध के
पास चलकर आई और उन्हें अपने घर भोजन के लिए
आमंत्रित किया । उसने इतने सरल और प्रेम भाव से बुद्ध से
विनती की कि बुद्ध मना नहीं कर सके । जब यह बात उनके
शिष्यों को पता चला कि महात्मा बुद्ध ने एक गणिका का
आमंत्रण स्वीकार किया है तो सबने इसका विरोध किया ।
महात्मा बुद्ध ने बड़ी सरलता से अपने
शिष्यों से कहा- 'मैंने तो उसकी प्रेम - भावना देखी । उसने
जिस भावना से मुझे बुलाया है वह बिलकुल पवित्र और
निश्छल था । वह आज मुझसे मिलने एक गणिका बनकर
नही बल्कि एक भक्ति - भाव से आई थी , फिर भला मैं कैसे
उसका आमंत्रण स्वीकार न करता? वह चाहे एक वेश्या हो
या फिर कोई सन्यासी ।'
यथासमय बुद्ध आम्रपाली के घर भोजन
के लिए गए । वह पहले से ही भोजन की सारी व्यवस्था
करके , भगवान बुद्ध के आने की राह देख रही थी । मन में
यह विचार भी आ रहा था कि कहीं बुद्ध अपनी बात से
मुकर न जाए। इतने बड़े सन्यासी भला क्यों एक वेश्या के
बुलाने पर उसके घर आकर भोजन करेंगे। परंतु जैसे ही
आम्रपाली ने बुद्ध को अपने घर आते देखा, उसकी प्रसन्नता
का ठिकाना न रहा । वह दौड़ कर दरवाजे पर गई और
उनका स्वागत किया ।
खुद अपने हाथों से भोजन परोसा
और उनकी आवभगत की । महात्मा बुद्ध के शिष्यों ने जो
उनके साथ आए थे जब एक वेश्या को , जिसके कदमों में
खुद सम्राट बिबंसार से लेकर अजातशत्रु थे । पूरी वैशाली
जिसके एक झलक पाने के लिए तरसती थी, उसे एक
सन्यासी के लिए ऐसा व्यवहार करते देख बुद्ध के शिष्यों
के मन में अपने गुरु के लिए सम्मान ओर ज्यादा बढ़ गया ।
आम्रपाली ने महात्मा बुद्ध के
व्यक्तित्व के बारे में जैसा सुना था, उनसे मिलने के बाद
वह उनसे उससे ज्यादा प्रभावित हुई और उसी समय वह
बुद्ध की शरण में चली गई । अपनी सारी संपत्ति वह बौद्ध -मठ
के नाम करके आजीवन भिक्षुणी बन गई ।
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