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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नहले पर दहला

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किसी गांव में सूरज नाम का चालाक आदमी रहता था  । वह ख्याली पुलाव बनाने में खुब तेज और पेटू था ।  वह एक किसान था पर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाने में माहिर था । एक दिन की बात है, वह गांव के मशहूर हलवाई अमर की दुकान पर गया । मिठाई पर नजर डालते हुए उसने कहा कि - एक किलो बर्फ का क्या दाम है? "पचास रुपये किलो "- अमर ने कहा । "ठीक है एक किलो तोल दो" -सूरज ने कहा । अमर ने जैसे ही बर्फ तोलकर सूरज को देना चाहा सूरज झट से बोला बर्फ रहने दो एक किलो जलेबी दे दो । अमर सूरज के मसखरेपन से वाकिफ था इसलिए कुछ नहीं बोला और बर्फ को एक तरफ करके जलेबी तोलकर सूरज को देने लगा । ठीक उसी समय सूरज फिर से बोला - "नहीं भाई ! जलेबी मेरी पत्नी को पसंद नहीं है इसलिए एक काम करो एक किलो लड्डू तोल दो । अमर अंदर से झल्लाया और मन-ही-मन सोचा कि अगर इस बार इसने मना कर दिया तो इसे चलता कर दूंगा। सूरज इस बार चुप रहा । अमर ने कहा ऐ लू लड्डू और इसके हुए चालीस रुपए । सूरज ने कहा काहे के चालीस रुपए मैंने तो बर्फ मांगा था । अमर बोला तो लाओं बर्फ के पै...

सेर को सवा सेर

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    शहर गंगापुर में सबसे बड़ी दुकान दमड़ी साह की थी । उसकी दुकान में जरूरत का सारा सामान मिल जाता था । लेकिन दमड़ी साह था बड़ा नफाखोर आदमी । सस्ती और बेकार चीज़ें लाकर मनमाने ढंग से बेचते थे । सब जानते हुए भी लोग कुछ नहीं कह पाते थे क्योंकि आस-पास कोई ओर अच्छी दुकान भी नहीं थी ।                          उसी शहर में सोहन नाम का एक बुद्धिमान आदमी रहता था । साह की आदतों से परेशान होकर उसने उसे सबक सिखाने की सोची ।   अगले ही दिन सोहन दमड़ी साह की दुकान पर गया और कहा - राम राम साह जी । "हाँ हाँ ठीक है ! कुछ चाहिए तो बोलों। उसने भौंहे टेढ़ी करके कहा । सोहन बोला - चाहिए तो कुछ नहीं बस मैं आपकों अपने घर दावत का निमंत्रण देने आया था । दावत का नाम सुनते ही साह को आश्चर्य हुआ पर अंदर ही  अंदर खुश होकर बोला - किस बात की दावत? सोहन - आपको दावत में बुलाने के लिए भी कोई कारण की जरूरत है । दमड़ी साह ने खुश होकर दावत का निमंत्रण स्वीकार कर लिया । यथासमय शाम को दुकान बंद क...

जो गरजते है वे बरसते नहीं

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          कुंभज नाम का एक कुम्हार बहुत सुन्दर घड़े , सुराही और गमले बनाता था । उसके बनाये सामान की मांग दूर-दूर के गावों तक थी । वह अपनी काम बहुत ईमानदारी और निष्ठा के साथ करता था । उसके पास रहने के लिए बस एक ही कमरा था और बाहर बहुत बड़ा चौक था ।  कुंभज अपने बनाये मिट्टी के बरतनों को चौक पर ही सुखाया करता था ।  वह दिन-रात परिश्रम करके अपने काम  करके भी अपने जीवन से बहुत खुश था । कुंभज अभी अविवाहित था और चाहता था कि मेहनत करके थोड़ा पैसा कमा लूं फिर विवाह करूंगा । वह बहुत ही होशियार था । किसी काम को गहराई से समझता तभी उसमें हाथ डालता ।                     कुंभज के बनाये बर्तन हमेशा चौक पर ही रहते इसलिए उसे बरसात के दिनों या फिर बेमौसम बरसात में काफी दिक्क़त का सामना करना पड़ता था । एक दिन की बात है , अचानक मौसम बहुत खराब हो गया तेज हवाएं चलने लगी बादल गरजने लगे । वैसे तो उसने बरसात से अपने बर्तनों को बचाने का इंतजाम कर रखा था पर फिर भी अचानक बादलों के ...