संदेश

जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी

चित्र
कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान से मन-ही-मन में प्रेम करती थी । राजकुमारी  पृृथ्वीराज के बहादुरी के किस्से बचपन से ही सुनती आ रही थी । धीरे-धीरे जब वह एक छोटी बालिका से एक युवती के रूप में परिवर्तित हो गई तो उसका यह आकर्षण प्रेेेम में परिवर्तित हो गया ।  राजकुमारी ने पृथ्वीराज को कभी एक युवक के रूप में नहीं देखा था इसलिए वे पृथ्वीराज का समाचार या उनकी तस्वीर  दिखाने वाले को बहुत इनाम दिया करती थी । वह सदैव ही राजा पृथ्वीराज के विषय में जानने को तत्पर रहती थी । उनकी बहादुरी की  नईं नई बाते सुनने के लिए प्रतीक्षा करती थी । चित्रकार पन्नाराय राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज के अलग-अलग चित्र दिखाया करते थे । एक बार उन्होंने पृथ्वीराज चौहान का जंगल में शिकार करते समय का चित्र दिखाया जिसे देखकर राजकुमारी अपने प्रेम पर मंत्रमुग्ध होकर उस चित्र पर हाथ फेेेरने लगीं । पन्नाराय ने उसी समय राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाया जिसमें वह अप्रतिम सुंदरी लग रही थी । उस चित्र को लेकर पन्नाराय दिल्ली पृथ्वीराज चौहान के पास पहुंचे और संयोगिता का संदेश और चित्र उन्हें दिया ।

देवयानी और राजा ययाति का विवाह

चित्र
 एक बार कि बात है , दैत्यगुरू शुक्रराचार्य की पुत्री देवयानी अपनी सखी और दैत्यराज विषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के साथ उद्यान घूूूमने निकली । घूमते हुए वे सब उद्यान के सरोवर में  अपने-अपने वस्त्र उतारकर स्नान करने लगी । सुंदरता के मामले में देेवयानी की सुंदरता अलौकिक थी दूसरी ओर राजकुमारी शर्मिष्ठा भी अति सुंदर थी ।  जब वे सब सुुंदरियां स्नान कर रही थी ठीक उसी समय भगवान शिव और पार्वती माता उस जगह से गुजर रहे थे । भगवान शंंकर को देेेखकर   सभी युवतियां लज्जावश दौडकर अपने वस्त्र धारण करने लगी । शीघ्ररता में शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र धारण कर लिया जिससे देवयानी अत्यधिक क्रोधित हुई  और गुस्से में शर्मिष्ठा को बुरा-भला कहने लगी । देेवयानी ने इसे अपना अपमान समझा । देवयानी के अपशब्द सुनकर शर्मिष्ठा भी अपमान से तिलमिला उठी और उसके वस्त्रों को छीनकर उसे एक कुएं में ढकेल दिया और वहां से चली गई । उसी समय राजा ययाति उस जगह आखेेेट करते हुए पहुंचे और पानी की खोज में कुएं तक पहुंच गए । कुुुुएं मेंं उन्होंने देवयानी के सुंदर मुख को देख तो देखते ही रह गए । ययाति ने देवयानी को कुएं से बाहर निकाला ।

कच और देवयानी

चित्र
बात उस समय की है जब देवताओं और दानवों में त्रिलोक विजय के लिए युद्ध हो रहा था । देवताओं के गुरु बृहस्पति थे तथा दानवों के गुरु शुक्रराचार्य थे । दोनों गुरूओं का आपस में बहुत होड़ था। दैत्य गुरू शुक्रराचार्य संजीवनी विद्या के जानकार थे । वे मरे हुए दैत्यों को अपनी विद्या से दोबारा जीवित कर देते थे जिससे बल और बुद्धि में श्रेष्ठ देवताओं में बहुत आतंक था । देवताओं के गुरु बृहस्पति ने देवों को बचाने का उपाय सोचा । सेवा, श्रद्धा और भक्ति से ही दैत्य गुरू शुक्रराचार्य को प्रसन्न किया जा सकता था अतः बृहस्पति ने अपने रूपवान और ब्रहमचारी पुत्र कच को को गुरु शुक्रराचार्य के पास भेजा । कच शुक्रराचार्य के आश्रम में रहकर गुरु की सेवा करने लगे । दूसरी ओर कच की मित्रता गुरु शुक्रराचार्य की पुत्री देवयानी से हुई ।  देेवयानी अत्यंत सुन्दर और बुद्धिमान युवती थी । दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत पसन्द था । देवयानी मन-ही-मन में कच से प्रेम करने लगी थी ।  शुक्रराचार्य भी अपने परम शिष्य की सेवा और भक्ति से गदगद हो गये थे । Kacha and devyani उधर जब यह बात दैत्यों को पता चला कि देवताओं ने कच को सं